Jan 6, 2023
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
दोस्तों, इस दुनिया में दो तरह के लोग होते हैं पहले वे जो कहते हैं और दूसरे वे जो करते हैं। अर्थात् कुछ लोग शब्द वीर होते हैं तो कुछ कर्मवीर। जो शब्द वीर होते हैं, वे लोगों को हर बात पर उदाहरण देते हैं। लेकिन जो कर्मवीर होते हैं वे उदाहरण बनते हैं। जी हाँ साथियों, ज़ुबान पर हर पल, हर विषय से सम्बंधित उदाहरण होना श्रेष्ठता या सर्वोत्तम होने की निशानी नहीं है। इंसान तो श्रेष्ठ, सर्वोत्तम या महान तो सिर्फ़ कर्मों से बनता है।
कर्मवीर ना होने के कारण ही इस दुनिया में 90 प्रतिशत लोग जीवन में कभी अपना लक्ष्य पा नहीं पाते हैं, अपने संकल्प पूरे नहीं कर पाते हैं। याद रखिएगा बिना पुरुषार्थ या कर्मवीर बने महान से महान सपने या संकल्प रेत के महल के सामान होते हैं जो जरा सी विषम परिस्थिति या चुनौती आते ही ढह जाते हैं। इसका अर्थ यह नहीं है कि संकल्प या बातों का कोई महत्व नहीं है। संकल्प भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कर्म या पुरुषार्थ का। इन दोनों का रिश्ता तो एक बिल्डिंग में काम में आने वाले नींव और कॉलम-बीम समान है। संकल्प नींव है और कर्म उस पर बनने वाली इमारत के कॉलम और बीम। दोनों अगर साथ में होंगे तो ही गगनचुंबी सफलता की इमारत बनाई जा सकती है। दूसरे शब्दों में कहूँ तो, आपके संकल्प अगर आपके पुरुषार्थ याने कर्म के साथ अलाइन होंगे तो आप जीवन में सफलता के शिखर को छू सकते हैं।
वैसे दोस्तों, इसी बात को लीडरशिप मंत्र के रूप में भी देखा जा सकता है। इस दुनिया में दो तरह के लीडर होते हैं। पहले वे जो सिर्फ़ कह कर कार्य करवाना चाहते हैं। टीम को वे ढेरों उदाहरण बताते रहते हैं जिससे टीम प्रेरणा ले और कार्य करे। लेकिन मेरा मानना है ज़ुबान पर उदाहरण वाले लीडर होने से बेहतर है कि लीडर के जीवन में श्रेष्ठता हो। इसलिए दूसरी कैटेगरी में वे लीडर आते हैं जो वाणी अर्थात् कह कर उदाहरण देने के मुक़ाबले अपने कार्य से टीम को प्रेरित करते है क्योंकि इन्हें पता होता है कि वाणी के मुक़ाबले कार्य से उदाहरण देना ज़्यादा प्रभावी होता है। कोरा उपदेश कभी ज़्यादा प्रभावी नहीं होता। अगर उपदेश में कही बातों को चरितार्थ करके दिखा दिया जाए तो उसका प्रभाव कई गुना बढ़ जाता है।
यही वो बात है साथियों, जो हर सफल लीडर में समान रूप से पाई जाती है। सभी सफल लीडर अपने कार्यों से अपनी टीम को प्रेरणा देते है। इसलिए अगर आप सफल होना चाहते हैं तो हमेशा ध्यान रखें कि महत्वपूर्ण यह नहीं है कि आप अच्छा कह रहे हैं, अपितु महत्वपूर्ण यह है कि आप अच्छा कर रहे हैं। सृजनात्मकता, पुरुषार्थ, कर्म प्रधान होना सफल जीवन की मांग नहीं अपितु अनिवार्यता है। इसलिए हमेशा साथियों अच्छा कहने पर नहीं बल्कि अच्छा करने को प्राथमिकता में रखें, हो सकता है इसका परिणाम आपको हाथों-हाथ ना मिले। यह भी हो सकता है कि आपको ऐसा लगे कि पूरा सिस्टम आप पर आधारित होता जा रहा है। लेकिन चिंता मत करिएगा, जल्द ही आपको नई पीढ़ी के आपके जैसे लीडर मिलना चालू हो जाएँगे। याद रखिएगा हर फ़ॉलोअर भविष्य का लीडर है, अगर आप उसे करके सिखा रहे हैं, तो वह भी कर्म को ही प्रधान मानते हुए जीवन में आगे बढ़ेगा, कर्म प्रधान लीडर बनेगा। इसीलिए तो शायद भगवान कृष्ण ने महाभारत में अर्जुन को गीता उपदेश देते समय कर्म को प्रधान बताया था, साथ ही फल की इच्छा ना रखने का कारण बताते हुए कहा था, ‘कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन’, अर्थात् तेरा कर्म करने में अधिकार है, इनके फलो में नही। तू कर्म के फल के प्रति असक्त न हो या कर्म न करने के प्रति प्रेरित न हो।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
Comentarios