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Writer's pictureNirmal Bhatnagar

शब्दों से मिले घाव आसानी से नहीं भरते…

July 19, 2024

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

आईए दोस्तों, आज के शो की शुरुआत एक कहानी से करते हैं। बात कई साल पुरानी है, एक लकड़हारा रोज़ जंगल में लकड़ी काटने ज़ाया करता था। एक दिन जब वह जंगल में पेड़ काट रहा था, तभी उसका ध्यान दूर से आती शेर की आवाज़ पर गया। पहले तो वो शेर की दहाड़ सुन डर गया, लेकिन जल्द ही उसे एहसास हुआ कि शेर की दहाड़ दर्द भरी है। लकड़हारे ने शेर की मदद करने का निर्णय लिया और सजगता के साथ घने जंगल की ओर बढ़ा। अभी वह कुछ ही दूर चला था कि उसे एक गहरे गड्डे में शेर के गिरे होने का एहसास हुआ। लकड़हारा जब उस गड्डे के पास पहुँचा तो शेर ने उससे गड्डे में से बाहर आने के लिए मदद माँगी।


लकड़हारे ने किसी तरह अपने डर पर क़ाबू पाया और शेर को उस गड्डे से बाहर निकाला। इस घटना के कारण दोनों में बहुत अच्छी दोस्ती हो गई। अब तो लकड़हारा रोज़ शेर से मिलने लगा और इस कारण पूरे जंगल में उसका दबदबा स्थापित होने लगा। शेर के डर के कारण अब सारे जानवर लकड़हारे की इज्जत करने लगे और साथ ही जब उन्हें मौक़ा मिलता था वे उसकी मदद भी कर दिया करते थे। जैसे अब कटी हुई लकड़ी को लकड़ियों को एक तरफ़ जमाने की ज़िम्मेदारी बंदर ने ले ली थी और गधा अब कटी हुई लकड़ियों को लकड़हारे के घर तक पहुँचाया करता था।


एक दिन लकड़हारे ने सोचा, ‘मित्र शेर की मदद के कारण मेरी आर्थिक और सामाजिक स्थिति अब पहले से काफ़ी बेहतर हो गई है। इसलिए मुझे अब शेर का आभार व्यक्त करना चाहिए।’ विचार आते ही लकड़हारे ने शेर को अपने घर पर भोजन के लिए आमंत्रित करा, जिसे शेर ने तुरंत स्वीकार लिया। लकड़हारा खुश हो उसी पल अपने घर गया और अपनी पत्नी से बोला, ‘कल मेरा सबसे अच्छा मित्र भोजन करने घर आएगा।’ पत्नी ने एकदम खुश होते हुए कहा, ‘अरे वाह यह तो बड़ी ख़ुशी की बात है। जिसके कारण हमारे घर में समृद्धि और ख़ुशियाँ आई, उसके लिए मैं एक से एक पकवान बनाऊँगी; पूरे घर को दिवाली माफ़िक़ सजाऊँगी।’ इस पर लकड़हारे ने कहा, ‘सुनो, तुम सिर्फ़ घर की साफ़-सफ़ाई और उसकी सजावट पर ध्यान दो। मित्र के लिये भोजन का प्रबंध में ख़ुद करूँगा।’ पत्नी ने उसी पल हाँ में सर हिलाया और तैयारियों में जुट गई।


अगले दिन एक और जहाँ लकड़हारे का घर मित्र के स्वागत की आस में जगमगा रहा था, वहीं दूसरी ओर शेर भी अपने मित्र के यहाँ जाने, उसके परिवार से मिलने के लिये बेचैन था। वह बिलकुल तय समय पर लकड़हारे के घर पहुँच गया। लकड़हारे की पत्नी जो अभी तक खुश थी, एकदम बदल गई और एकदम से चिढ़ते हुए बोली, ‘मुझे नहीं पता था तुम ऐसे-ऐसे हिंसक, लड़ाकू और ख़ूँख़ार लोगों के साथ रहते हो। देखी है इसकी शक्ल? मुँह उठाये घूम रहे हो…’ पत्नी की कड़वी बात ने लकड़हारे और शेर दोनों का ही मन दुखाया था। लेकिन वे उस वक़्त कुछ ना बोले। लकड़हारे ने शेर के समक्ष भोजन के रूप में कच्चा मांस रख दिया और उससे उसे ग्रहण करने का निवेदन करने लगा। शेर ने अनमने मन से थोड़ा बाहर मांस खाया और दुखी मन से वहाँ से चला गया।


अगले दिन जब लकड़हारा जंगल पहुँचा तो शेर बहुत ही अनमने मन से उससे मिला। लकड़हारे ने भी दुखी मन से लकड़ियाँ काटी और वापस आ गया। शेर को इस तरह देख साफ़ महसूस हो रहा था कि लकड़हारे की पत्नी की कड़वी बातों ने उसके मन पर गहरा प्रभाव छोड़ा है। कुछ दिन ऐसे ही गुजर गये एक दिन शेर ने लकड़हारे से कहा, ‘तुम्हारी कुल्हाड़ी से मेरी पंच पर एक ज़ोरदार वार करो।’ लकड़हारे ने जब मना किया तो शेर दहाड़ता हुआ बोला, ‘मुझे ना सुनने की आदत नहीं है। जल्दी से वार करो नहीं तो मुझे अपनी बात मनवाना अच्छे से आता है। ऐसे ही लोग मुझे राजा नहीं मानते हैं।’


शेर की ग़ुस्से भरी बात सुन लकड़हारे ने कुल्हाड़ी से शेर की पंच पर वार किया। घायल शेर बिना कुछ कहे जंगल में चला गया। उसके बाद कई दिनों तक शेर अपने मित्र लकड़हारे से नहीं मिला। एक दिन अचानक ही शेर लकड़हारे से मिलने आया और उसके हाल चाल पूछने के बाद बोला, ‘मित्र तुमने मेरी पंच पर जिस जगह कुल्हाड़ी से वार किया था ज़रा उसे देख के बताओ अब वो घाव कैसा है?’ लकड़हारे ने शेर की बातों का अनुसरण तुरंत किया और अच्छे से उसकी पंच पर घाव ढूँढने लगा। जब उसे काफ़ी देर तक घाव नहीं दिखा तो उसने शेर से कहा, ‘मित्र मुझे लगता है वह घाव अब पूरी तरह ठीक हो गया है। अब तो उसका निशान भी नज़र नहीं आ रहा है।’ इतना सुनते ही शेर एकदम गंभीर मुद्रा में आ गया और दुखी मन के साथ बोला, ‘मित्र, कुल्हाड़ी का घाव भी समय के साथ भर गया है। लेकिन तुम्हारी पत्नी के कड़वे शब्दों से बना घाव मेरे मन में आज भी वैसा ही है। इसलिए आज से मैं तुमसे मिलने कभी नहीं आऊँगा।’ इतना कह कर शेर वापस जंगल में चला गया।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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