Jan 6, 2025
फिर भी ज़िंदगी हसीन है...
दोस्तों, आपकी सोच और आपका दृष्टिकोण ही यह तय करता है कि आपका जीवन कैसा होगा?, इसलिए हमारे जीवन में हर वो बात महत्वपूर्ण हो जाती है जो आपकी सोच और दृष्टिकोण को प्रभावित करती है। जैसे, अच्छी और सकारात्मक संगति आपकी सोच और दृष्टिकोण को सकारात्मक बनाती है। चलिए अपनी बात को मैं आपको एक कहानी के माध्यम से समझाने का प्रयास करता हूँ।
प्राचीन काल की बात है, एक नगर में दो ब्राह्मण पुत्र रहते थे। एक बहुत निर्धन था और दूसरा संपन्न। रोजमर्रा की चुनौतियों और परेशानियों के साथ-साथ पत्नी से मिलने वाले तानों के कारण परिवार में होने वाले झगड़ों के कारण निर्धन ब्राह्मण ने एक दिन अपने जीवन को समाप्त करने का निर्णय लिया और ग्यारस के दिन जंगल में शेर की गुफा के पास पहुँच गया। उसने सोचा था कि वो वहाँ पहुँचकर शेर को पत्थर मारेगा जिससे शेर परेशान होकर उसका शिकार कर लेगा। दोपहर का समय होने के कारण शेर उस वक्त गुफा में सो रहा था और बाहर हंस पहरा दे रहा था, ताकि शेर की नींद में कोई विघ्न न हो। जैसे ही हंस ने ब्राह्मण को हाथ में पत्थर लिए गुफा की ओर आते देखा, वह चिंतित हो गया। हंस सोचने लगा कि अगर शेर ने ग्यारस के दिन इस निर्दोष ब्राह्मण का शिकार कर लिया और अगर इस ब्राह्मण की मृत्यु हो गई, तो यह पाप होगा। जिसका फल निश्चित तौर पर शेर को भुगतना पड़ेगा।
विचार आते ही हंस ने जोर-जोर से चिल्लाकर शेर को जगाया और नींद में विघ्न डालने के लिए माफ़ी माँगते हुए बोला, ‘हे जंगल के राजा, आपके लिए आज शुभ दिन है। ग्यारस के दिन एक ब्राह्मण देवता स्वयं आपके पास आए हैं। यदि आप इन्हें दान देकर विदा करते हैं, तो आप महान पुण्य अर्जित करेंगे और आपको मोक्ष की प्राप्ति होगी।’ शेर को हंस की बात सही लगी। उसने अपने पास पूर्व में शिकार किए गए लोगों के रखे सभी गहने ब्राह्मण को दान कर दिए और उसे सुरक्षित घर लौट जाने को कहा। शेर के ऐसा कहते ही हंस ने ब्राह्मण को सभी गहने लेकर वहाँ से चले जाने का इशारा किया, जिसे ब्राह्मण ने तत्काल स्वीकारा और शेर को ढेरों आशीर्वाद देता हुआ वहाँ से चला गया।
कुछ ही दिनों बाद जब यह घटना अमीर ब्राह्मण की पत्नी को पता चली, तो उसने अपने पति को भी ग्यारस के दिन जंगल जा कर शेर की गुफ़ा के सामने जाने के लिए बाध्य किया। लेकिन इस बार गुफा के बाहर पहरे पर हंस नहीं, बल्कि कौवा था। ब्राह्मण को देखते ही कौवे का शातिर दिमाग़ तेज़ी से दौड़ने लगा। वह सोच रहा था कि किस तरह इस ब्राह्मण को शेर से मरवाया जाये और फिर शेर की भूख शांत हो जाने के बाद जो मांस बचेगा उससे मेरा भी काम हो जायेगा। विचार आते ही कौवे ने शेर को जगाने के लिए शोर मचाना शुरू कर दिया।
शेर के जागते ही कौवे ने ब्राह्मण के बारे में शेर को बताकर उसे गुस्सा दिलवाने का प्रयास किया। लेकिन शेर ने कौवे की मंशा समझ ली और इस बार उसने विवेक का परिचय देते हुए ब्राह्मण को चेतावनी देते हुए कहा, ‘पहले यहाँ हंस था, जिसने मुझे धर्म और पुण्य का मार्ग दिखाया। अब कौवा है, जो मुझे पाप की ओर प्रेरित कर रहा है। इससे पहले कि मैं भटक जाऊं, तुम यहाँ से चले जाओ। शेर किसी का जजमान नहीं होता, वह तो हंस था जिसने मुझसे भी धर्म का कार्य करवा लिया।
दोस्तों, कहने को तो यह सिर्फ़ एक कहानी है, लेकिन जैसा मैंने इस लेख की शुरुआत में कहा था, इससे हम अपने जीवन को बेहतर बनाने की सीख ले सकते हैं। जैसे जीवन में हमारी संगति हमारे व्यक्तित्व और विचारों को गहराई से प्रभावित करती है। सकारात्मक और सच्चे लोगों का साथ हमें सही दिशा दिखाता है। दूसरी बात, जिस तरह हंस ने शेर को सही राह पर चलने के लिए प्रेरित किया, ठीक वैसे ही अच्छे लोगों का साथ हमें सिखाता है कि दूसरों की भलाई में ही सच्चा धर्म और मानवता निहित है। तीसरी सीख जो इस कहानी से ली जा सकती है, वह है नकारात्मक प्रवृत्तियों से बचाव। उपरोक्त कहानी में कौवा नकारात्मकता और स्वार्थ का प्रतीक है। अगर हम अच्छा जीवन जीना चाहते हैं तो हमें जीवन में ऐसी प्रवृत्तियों से बचना चाहिए।
अंत में दोस्तों, मैं सिर्फ़ इतना कहना चाहूँगा कि सफल और शांतिपूर्ण जीवन जीने के लिए सही संगति और सकारात्मक सोच का होना आवश्यक है। हंस की प्रवृत्ति अपनाकर हम दूसरों की मदद कर सकते हैं और समाज को बेहतर बना सकते हैं। वहीं, कौवे की प्रवृत्ति से बचकर हम न केवल अपने जीवन को, बल्कि अपने आस-पास के वातावरण को भी सुखद बना सकते हैं। यही सच्ची मानवता और जीवन का उद्देश्य है।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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