Feb 20, 2025
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
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यकीन मानियेगा दोस्तों, जीवन में आप सफल होंगे या असफल यह इस बात से तय होता है कि आप अपना ज़्यादा समय किसकी संगत में बिताते हैं। इसलिए ही हमारे यहाँ कहा जाता है कि ‘संगत आपकी रंगत तय करती है।’ अपनी बात को मैं आपको एक उदाहरण से समझाने का प्रयास करता हूँ। एक चींटी जब पुष्प को अपना साथी बनाती है, तो वह मंदिर में ईश्वर के चरणों तक पहुँच जाती है और ईश्वर को चढ़ाए प्रसाद को सबसे पहले पाती है। अर्थात् बड़ी सहजता के साथ ईश्वर के समीप रह सबसे पहले प्रसाद ग्रहण करती है। लेकिन अगर यही चींटी जलती हुई लकड़ी के संपर्क में आती है तो जलकर भस्म हो जाती है। दोनों ही स्थितियों में चींटी तो वही थी, लेकिन उसकी संगति ने उसके भाग्य का निर्धारण कर दिया था।
यही सिद्धांत दोस्तों इंसानों पर भी ठीक इसी तरह लागू होता है। अर्थात् हमारी संगति भी हमारे व्यक्तित्व को प्रभावित करती है। यह हमें निहाल भी कर सकती है और बर्बाद भी। जी हाँ दोस्तों, अच्छे और बुरे लोगों की संगति हमारे व्यक्तित्व, विचारों और भविष्य को सीधे प्रभावित करती है। अगर हम अच्छी संगति में रहते हैं, तो हमारे विचार उच्च कोटि के होते हैं, नैतिकता और सद्गुण हमारे जीवन में प्रवेश करते हैं, और हम सफलता की ओर अग्रसर होते हैं। इसके विपरीत, बुरी संगति हमें नकारात्मकता, आलस्य और पतन की ओर धकेल देती है। इसलिए ही कहा जाता है कि हमारा व्यक्तित्व उन पाँच लोगों के व्यक्तित्व का मिश्रण होता है जिनके साथ हम अपना ज्यादातर वक्त बिताते हैं।
आइए दोस्तों, अब हम संगति से हमारे जीवन पर पड़ने वाले चार प्रभावों पर चर्चा कर लेते हैं-
पहला प्रभाव - संगति हमारे व्यक्तित्व को गढ़ती है
हमारे विचार और आदतें हमारी संगति से प्रभावित होते हैं। एक सकारात्मक, प्रेरणादायक और विद्वान व्यक्ति के साथ समय बिताने से हमारे भीतर आत्मविश्वास, धैर्य और प्रेरणा उत्पन्न होती है। वहीं, नकारात्मक और आलसी लोगों के साथ रहने से हमारा दृष्टिकोण नकारात्मक बन जाता है और हम गलत निर्णय लेने लगते हैं।
दूसरा प्रभाव - सफलता और असफलता संगति पर निर्भर करती है
इतिहास इस बात का गवाह है कि महान व्यक्तित्वों की सफलता के पीछे उनकी संगति का बहुत बड़ा योगदान रहा है। उदाहरण के लिए, भगवान श्रीराम ने महर्षि वशिष्ठ और महर्षि विश्वामित्र की संगति में रहकर धर्म और कर्तव्य का ज्ञान प्राप्त किया, जिससे वे एक महान राजा बने। दूसरी ओर, रावण जैसे विद्वान व्यक्ति का पतन उसकी बुरी संगति के कारण हुआ।
तीसरा प्रभाव - क्रोध और अज्ञानता का संबंध संगति से है
मूर्खों की संगति करने से ज्ञान का नाश होता है और क्रोध बढ़ता है। जब हम ऐसे लोगों के साथ रहते हैं जो बिना सोचे-समझे तर्क-वितर्क करते हैं, नकारात्मकता फैलाते हैं और अधर्म के मार्ग पर चलते हैं, तो हम भी धीरे-धीरे उन्हीं की तरह बनने लगते हैं। हमें हमेशा यह ध्यान रखना चाहिए कि हमारी संगति हमें विनाश की ओर न ले जाए।
चौथा प्रभाव - संगति खेल बिगाड़ भी सकती है और बना भी सकती है
हमारी संगति हमारे भविष्य का निर्धारण करती है। एक गलत संगति बना-बनाया खेल बिगाड़ सकती है और एक अच्छी संगति बिगड़ा हुआ खेल भी बना सकती है। इसलिए, हमें हमेशा इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि हम किन लोगों के साथ समय बिता रहे हैं और किनसे प्रभावित हो रहे हैं।
आइए दोस्तों अब हम सही संगति को चुनने के तीन प्रमुख सूत्र सीखते हैं-
पहला - सकारात्मक और प्रेरणादायक लोगों का साथ चुनें – ऐसे लोगों के साथ रहें जो आपको आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करें, जीवन में नैतिक मूल्यों को प्राथमिकता दें और जो आपके आत्म-विकास में सहायक हों।
दूसरा - बुरी संगति से बचें
नकारात्मक, ईर्ष्यालु, आलसी और द्वेषपूर्ण लोगों से दूरी बनाए रखें क्योंकि वे आपको भी अपने जैसा बना सकते हैं।
तीसरा - ज्ञान और आध्यात्मिकता का संग करें
सद्ग्रंथों का अध्ययन करें, विद्वानों की संगति करें और जीवन में अच्छे विचारों को अपनाएँ।
अंत में दोस्तों, मैं सिर्फ़ इतना कहना चाहूँगा कि संगति का प्रभाव बड़ा शक्तिशाली होता है। यह अच्छी संगति वाले को ऊँचाइयों तक पहुँचा सकता है, तो बुरी संगति वाले को विनाश के गर्त में धकेल सकता है। इसलिए, हमें बहुत ही सावधानीपूर्वक अपनी संगति का चुनाव करना चाहिए। अगर हम सही लोगों के साथ रहेंगे, तो हमारा भविष्य उज्ज्वल होगा और हम अपने लक्ष्यों को आसानी से प्राप्त कर सकेंगे।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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