top of page

संतोष में छुपा है जीवन का असली सुख !!!

Writer's picture: Nirmal BhatnagarNirmal Bhatnagar

July 19, 2022

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

आईए दोस्तों आज के लेख की शुरुआत एक बहुत प्यारी कहानी से करते हैं जिसे हाल ही में मेरे एक मित्र ने मुझसे साझा किया था। बात कई वर्ष पुरानी है, धर्म, जीवन मूल्य और मानवता के मार्ग पर हमेशा चलने वाला एक साधु अपने विचार और धर्म के प्रचार के लिए अलग-अलग शहरों में जाकर प्रवचन दिया करता था। एक बार उनके मन में विचार आया कि क्यूँ ना एक बड़ा आश्रम बना लिया जाए, जहाँ पर लोगों को धर्म, जीवन मूल्य आधारित शिक्षा और संस्कार के लिए जागरूक बनाया जाए।


विचार तो बहुत अच्छा था लेकिन साधु के सामने एक नई समस्या थी कि इस विचार को अमल में लाने के लिए धन कहाँ से आएगा? साधु ने सोचा, मैं प्रवचन देने के लिए एक गाँव से दूसरे गाँव, एक शहर से दूसरे शहर जाता ही रहता हूँ। अब मैं प्रवचन के पश्चात वहाँ मौजूद लोगों से मिलूँगा और उन्हें इस आश्रम को बनाने में सहयोग करने, दान देने के लिए प्रेरित करूँगा। विचार आते ही साधु ने इसे अमल में लाना शुरू कर दिया और जल्द ही उन्हें आश्रम बनाने के विचार पर लोगों का सहयोग मिलने लगा।


अपने इसी उद्देश्य पूर्ति के लिए साधु एक बार एक बहुत ही छोटे से गाँव में पहुंचे। गाँव में उनकी मुलाक़ात एक बहुत ही साधारण कन्या विदुषी से हुई। उस विदुषी ने बड़े आदर के साथ साधु का स्वागत-सत्कार किया और उनसे कुछ समय कुटिया में रुककर विश्राम करने की याचना की। साधु उस विदुषी के व्यवहार से खुश होने के साथ-साथ थके हुए भी थे, उन्हें लगा आज रात्रि विश्राम कर लेना उचित रहेगा और फिर कल सुबह मैं अपना कार्य प्रारम्भ करूँगा।


साधु महाराज से स्वीकारोक्ति पा विदुषी उन्हें अपनी झोपड़ी में ले गई, बहुत प्यार से साधारण सा भोजन कराया और एक खटिया पर दरी बिछाकर उनके सोने की व्यवस्था कर दी और खुद ज़मीन पर एक टाट का बोरा बिछाकर आराम से सो गई। दूसरी ओर साधु महाराज को तो उस खटिया पर नींद ही नहीं आ रही थी। वह करवट बदल-बदल रात्रि के प्रहर बिता रहे थे। असल में साधु महाराज को मोटे और नरम गद्दे पर सोने की आदत थी जो उन्हें दान में मिला था। इसलिए वे दरी बिछी खटिया पर परेशान हो रहे थे।


ऐसे ही करवट बदलते-बदलते रात्रि के दूसरे प्रहर में साधु महाराज की नज़र चैन से ज़मीन पर सो रही विदुषी पर पड़ी। वे हैरानी से उसे देखते रहे और सोचते रहे कि इतनी विपरीत परिस्थितियों में भी उसे संतोष है, निश्चिंतता, चैन है। वह अभावों में भी अपना धर्म बखूबी निभा रही है और दूसरी ओर मैं साधु होते हुए भी परेशान हूँ। इन्हीं विचारों के बीच कब रात बीत गई, साधु महाराज को पता ही नहीं चला।


दूसरे दिन सुबह विदुषी के उठते ही साधु महाराज ने उससे प्रश्न करा, ‘पुत्री तुम ज़मीन पर टाट बिछाकर भी इतने चैन के साथ कैसे सो लेती हो।’ विदुषी साधु को प्रणाम करते हुए बोली, ‘महाराज, मेरे लिए तो यह टाट का बिछौना मख़मल से आरामदायक गद्दे के सामान है और मेरी यह कुटिया किसी भी बड़े-से-बड़े महल से ज़्यादा बेहतर और भव्य है क्यूँकि इन सभी चीजों में मेरे श्रम, मेरी मेहनत की महक बसी हुई है। मुझे दिनभर अपना सर्वश्रेष्ठ देने के बाद, एक समय का भोजन मिलता है तो मैं स्वयं को बहुत भाग्यशाली मानती हूँ। दिनभर मेहनत करने के बाद जब मैं इस धरा पर लेटती हूँ, तो मुझे माँ की गोद का आत्मीय एहसास होता है। लेटने के पश्चात मैं दिनभर में की गई ग़लतियों के लिए ईश्वर से क्षमा माँगती हूँ और दिनभर में किए गए सत्कर्मों को याद करते हुए चैन से सो जाती हूँ।


विदुषी की बात सुनते ही साधु महाराज ने सच्चा ज्ञान देने के लिए उसके चरण छुए, धन्यवाद दिया और वहाँ से वापस जाने लगे। विदुषी अचरज के साथ उन्हें देख रही थी, उसने पहले तो साधु महाराज से अनजाने में हुई गलती के लिए क्षमा माँगी तथा नया आश्रम बनाने के बारे में पूछने लगी। विदुषी का प्रश्न सुनते ही साधु महाराज बोले, ' बालिका, आज ही मुझे जीवन का सच्चा ज्ञान मिला है, अब मुझे पता है कि मन का सच्चा सुख कहाँ है और रही बात नया आश्रम बनाने की तो, अब मुझे किसी भी कार्य के लिए, किसी नए स्थान या आश्रम की ज़रूरत नहीं है।’ इतना कहते हुए साधु वहाँ से वापस चल दिए और रास्ते में उन्होंने अभी तक दान में मिले पैसों को जरूरतमंद लोगों को दे दिए और स्वयं अपने गाँव पहुँच कर एक छोटी सी कुटिया में रहने लगे।


दोस्तों, मुझे तो लगता है जो गलती साधु महाराज ने की थी ठीक वैसी ही चूक हम अपना जीवन जीते समय कर रहे है। घर, गाड़ी, पैसा, पद आदि सब कुछ पहले से और ज़्यादा पाने की चाहत में हम हमारे पास जो उपलब्ध है, का मज़ा लेने से चूक रहे हैं। शायद इसीलिए तो हम अपने आस-पास ऐसे कई लोगों को देख सकते हैं जिनके पास बड़ी गाड़ी, बड़ा बैंक बैलेंस, बड़ा घर, नौकर-चाकर सब कुछ होने के बाद भी वह ख़ुशी नहीं है। वे हमेशा इसी ऊहापोह में लगे रहते हैं कि और ज़्यादा कैसे पाया जाए। इसके ठीक विपरीत जो व्यक्ति उसके पास जो भी है से संतुष्ट हैं, जो और ज़्यादा पाने की अंधी दौड़ का हिस्सा नहीं है, जो मोह रहित है, वही संतुष्ट और सुखी है। जी हाँ दोस्तों ईश्वर ने आपको जो भी दिया है, उन्हीं संसाधनों में खुश रहते हुए जीवन जीना ही, जीवन में खुश रहने का मूलमंत्र है।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

nirmalbhatnagar@dreamsachievers.com

16 views0 comments

Comments


bottom of page