Oct 13, 2022
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
दोस्तों, आज सुबह-सुबह एक सज्जन ने मुझसे पूछा, ‘सर, क्या मैं आपसे एक प्रश्न पूछ सकता हूँ?’ मेरे हाँ में सर हिलाते ही वे सज्जन बोले, ‘सर, आपने कुछ दिन पूर्व इसी कॉलम में बताया था कि, ‘बात, जो चित्त तक पहुँच जाती है, उसे ही बातचीत कहते हैं।’ मैंने कहा, ‘बिलकुल!’ मेरा जवाब सुन वे कुछ पल शांत रहे, फिर बोले, ‘वैसे बात तो आपकी एकदम ठीक है, लेकिन मैं एक बात नहीं समझ पा रहा हूँ आख़िर हर बात दिल तक क्यूँ नहीं पहुँचती?’
वैसे बात उनकी सही भी थी, अक्सर आपने देखा होगा बोलने वाला अपने उद्देश्य को ध्यान में रख संवाद करता है और सुनने वाला अपनी सोच या फ़ायदे के अनुसार उसका अर्थ निकालता है। इसकी मुख्य वजह तार्किक आधार पर अपने फ़ायदे को पहले रखते हुए बात कहना अथवा सुनना होता है। इसके साथ ही बात कहते या सुनते वक्त आपका नज़रिया कैसा है?, यह महत्वपूर्ण रोल निभाता है।
इसी बात को ध्यान में रख मैंने उन सज्जन को जवाब देने के स्थान पर एक उदाहरण से समझाना बेहतर समझा। मैंने बात आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘सर, अक्सर परिस्थिति समान होने के बाद भी नज़रिया या मनःस्थिति का अलग होना बात को चित्त तक पहुँचने से रोक सकता है। इसे हम पति-पत्नी के रिश्तों को सामान्य बनाने के प्रयास में एक सज्जन द्वारा अपने मित्र से पूछे गए तीन प्रश्नों के दो अलग-अलग मनःस्थिति में दिए गए जवाबों से समझने का प्रयास करते हैं।
सीन-1
पहला प्रश्न - क्या तुम दोनों एक परिवार के रूप में मंदिर दर्शन करने के लिए एक साथ आ सकते हो ?
उत्तर - मुझे लगता है शायद नहीं।
दूसरा प्रश्न - क्या आप दोनों रात को एक परिवार के रूप में साथ में खाना खा सकते हैं?
उत्तर - मुझे लगता है कि यह सम्भव नहीं है।
तीसरा प्रश्न - क्या आप एक दूसरे को माफ़ कर सकते हैं?
उत्तर - मेरा तो ठीक है, वह नहीं करेगी।
सीन-2
अब इन्हीं प्रश्नों के उत्तर हम द्वितीय मनःस्थिति के साथ देखते हैं -
पहला प्रश्न - क्या तुम दोनों एक परिवार के रूप में मंदिर दर्शन करने के लिए एक साथ आ सकते हो ?
उत्तर - मैं अपनी तरफ़ से पूरी कोशिश करूँगा।
दूसरा प्रश्न - क्या आप दोनों रात को एक परिवार के रूप में साथ में खाना खा सकते हैं?
उत्तर - हाँ, बिलकुल।
तीसरा प्रश्न - क्या आप एक दूसरे को माफ़ कर सकते हैं?
उत्तर - मैं ज़रूर करूँगा, लेकिन इस वक्त उसकी तरफ़ से आश्वस्त नहीं कर पाऊँगा।
दोनों मनःस्थिति के आधार पर सवालों के जवाब बताने के बाद चर्चा आगे बढ़ाने के लिए मैं कुछ कहता उससे पहले ही प्रश्न पूछने वाले सज्जन मुझसे बोले, ‘सर, आपको नहीं लगता पहली मनःस्थिति के आधार पर दिए गए जवाब हमारे दिल को चुभ रहे हैं। ऐसा लगता है, जैसे सामने वाला व्यक्ति पूरी तरह नकारात्मक मानसिकता के साथ जवाब दे रहा है।’ मैंने मुस्कुराते हुए कहा बिलकुल सही पहचाना आपने। पहली और दूसरी मनःस्थिति में नकारात्मक और सकारात्मक मानसिकता या नज़रिए का ही अंतर है। जब भी दो लोगों के बीच का संवाद नकारात्मक उद्देश्यों, मनःस्थिति या नज़रिए के साथ होता है, एक दूसरे की बात दिल तक या चित्त तक नहीं पहुँच पाती है, इसीलिए अपना उद्देश्य पूर्ण नहीं कर पाती है। तो आईए दोस्तों, आज से हम अपना हर संवाद सकारात्मक उद्देश्यों के आधार पर करने का प्रयास करते हैं और अपनी बात को लोगों के चित्त तक पहुँचाते हैं।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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