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संसाधन देने से पहले बच्चों को उसके सही मूल्य का एहसास करवाएँ…

Writer's picture: Nirmal BhatnagarNirmal Bhatnagar

Aug. 05, 2022

फिर भी ज़िंदगी हसीन है...

‘पापा, आपने मुझे नक़ली घड़ी क्यूँ दिलवाई?’ 10-11 साल के बच्चे के मुँह से यह प्रश्न सुनकर मेरे कान एकदम से खड़े हो गए, क्यूँकि मेरे सामने ही उस बच्चे के पिता ने उसे कुछ घंटे पूर्व एक नई और असली घड़ी लाकर दी थी। घड़ी पाकर बच्चा बहुत खुश हो गया था और अपनी नई घड़ी को दोस्तों को दिखाने के लिए बाहर भागा था। मैं समझ नहीं पा रहा था, 15-20 मिनिट में ऐसा क्या हो गया कि वह बच्चा उस घड़ी को नक़ली बताकर, पिता के सामने प्रश्न खड़ा कर रहा था?


मैं अभी विचारों में खोया ही हुआ था कि बच्चे के पिता ने बात सम्भालते हुए कहा, ‘किसने कहा तुम्हारी घड़ी नक़ली है? देखो यह घड़ी एकदम सही समय बता रही है।’ ‘लेकिन पापा यह सोमेश की घड़ी जैसी नहीं है। उसके पास स्मार्ट घड़ी है, यह वाली तो एकदम बकवास है।’ पिता की बात को बीच में काटते हुए, बच्चे ने कहा। बच्चे का तर्क सुनते ही मुझे अपना बचपन याद आ गया कि किस तरह हम अपने पिता से नकली घड़ी दिलवाने के लिए पीछे पड़ा करते थे और जब कई प्रयास करने के बाद वह मिलती थी तो उसे पहन कर किस तरह इतराया करते थे।


मैं अभी इन विचारों में खोया हुआ ही था कि बच्चे की चिड़चिड़ाती आवाज़ ने मेरा ध्यान भंग कर दिया, ‘आप मुझे हमेशा बेकार चीज़ें लाकर देते हो। मेरे दोस्तों को देखो, वे सभी ब्रांडेड सामान ख़रीदते हैं। उनकी कोई एक चीज़ ख़राब होती है तो वे दूसरी ले आते हैं और एक आप हो, हमेशा बेकार चीज़ें ही लाते हो।’ बात यहीं खत्म नहीं हुई, इसके बाद बच्चे ने कम से कम दस चीज़ें और गिनाई जो उसके दोस्तों के पास थी, पर उसे अभी तक नहीं मिली थी और इसके जवाब में पिता ने भी उसे कम से कम दस चीज़ें गिनाई जो उसके पास तो थी, लेकिन उसके दोस्तों के पास नहीं थी। वैसे, मेरी नज़र में पिता का यह जवाब कहीं से भी सही नहीं था, ख़ैर इस घटना को अभी यहीं छोड़ते हैं।


पिछले कुछ वर्षों में कैरियर काउन्सलिंग के दौरान मैंने एक बात लगभग हर बच्चे में एक समान पाई है।आजकल अधिकांश बच्चे वही कैरियर चुनना चाहते हैं, जिसमें उन्हें अच्छा पैकेज मिल सके, फिर भले ही उस कैरियर में उनकी रुचि, क्षमता और अनुकूल स्थितियाँ हो या ना हो। और हाँ, अगर आप इन बच्चों से इस अतिरिक्त आमदनी के उपयोग के विषय में पूछेंगे तो आप पाएँगे कि वे इसका उपयोग महँगी चीजों को ख़रीदने के लिए करेंगे। जिसे वे सिर्फ़ क़ीमत की वजह से अच्छी और बड़े ब्रांड की मानते है।


इस स्थिति को देख मेरे मन में तो एक ही प्रश्न उठता है, ‘आख़िर इसके लिए ज़िम्मेदार कौन है?’ और हर बार जवाब के रूप में एक ही विचार मेरे मन में आता है, ‘पालक के रूप में हम!’ अर्थात् माता-पिता, पालक या समाज के रूप में हम बच्चों को जीवन मूल्य देने में कहीं ना कहीं असफल हो गए हैं।


चलिए, अपनी बात को मैं थोड़ा विस्तार से समझाने का प्रयास करता हूँ। अगर आप आज के सामाजिक परिवेश को ध्यान से देखेंगे तो आप पाएँगे कि ज़्यादातर परिवार एकल हो गए हैं और इन एकल परिवारों में माता-पिता दोनों ही पढ़े-लिखे होने के साथ-साथ किसी ना किसी रूप में अपने लक्ष्यों को लेकर प्रतिबद्ध हैं। फिर चाहे वह लक्ष्य व्यक्तिगत हो, व्यवसायिक हो या फिर सामाजिक। इसी कारण वे कई बार अपने बच्चों को पूरा समय नहीं दे पाते हैं और इसकी कमी संसाधन उपलब्ध करवाकर पूरी करना चाहते हैं।


बच्चों को नम्बर 1 बनाने की अपनी इच्छा के साथ-साथ, उसके प्रति अपनी ज़िम्मेदारी अच्छे से निभाने के प्रयास में उसे हर चीज़ समय और आवश्यकता से पहले उपलब्ध करवाने के कारण आज के बच्चे साधन और सुविधा के आदि तो हो गए हैं पर उन्हें इन्हें उपलब्ध करवाने में लगी मेहनत और क़ीमत का अंदाज़ा ही नहीं है। दोस्तों अगर आप वाक़ई अपने बच्चे को नम्बर 1 बनाना चाहते हैं तो उसे औपचारिक शिक्षा के साथ-साथ जीवन और पैसों के मूल्य के बारे में भी सिखाएँ।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

nirmalbhatnagar@dreamsachievers.com

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