Dec 29, 2022
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
दोस्तों, निश्चित तौर पर आप मेरी इस बात से सहमत होंगे कि शुद्ध घी हमारी सेहत के लिए अत्यंत लाभकारी होता है। लेकिन सोच कर देखिएगा, अगर हम इसी अत्यंत लाभकारी चीज़ को एक बार में अत्यधिक मात्रा में खा लें तो क्या होगा? निश्चित तौर पर आप कहेंगे स्वास्थ्य ख़राब हो जाएगा। ठीक इसी तरह, अच्छे से अच्छा निशानेबाज़ बंदूक़ की नाल अपनी ओर रख कर सामने रखे खिलौने पर निशाना लगा कर गोली चलायेगा, तो बताइए परिणाम क्या होगा? आप भी कहेंगे, ‘क्या फ़ालतू का सवाल पूछ रहा है। बंदूक़ की नाल अपनी ओर रख कोई गोली चलाएगा क्या?'
बात तो सही है आपकी साथियों पर सामान्य जीवन में अक्सर हम यही करते हैं। हम अपने पास उपलब्ध साधनों, संसाधनों, रिश्तों, सम्बन्धों आदि का उपयोग इस तरह से करते हैं कि जो चीज़ हमारे लिए लाभदायक थी, वही हमारे लिए नुक़सानदायक साबित होने लगती है। यह बात भोग-विलास की सभी वस्तुओं पर भी समान रूप से लागू होती है। जैसे, मोबाईल ने आपसी दूरी को खत्म कर संवाद को आसान बनाया है, लेकिन इसके ज़रूरत से ज़्यादा इस्तेमाल के आज हम दुष्परिणाम भी देख रहे हैं।
असल में दोस्तों, इन सभी उदाहरणों से मैं आपको सिर्फ़ एक बात समझाने का प्रयास कर रहा हूँ कि हमारे जीवन में किसी भी वस्तु से ज़्यादा प्रभाव, हमेशा इस बात से पड़ता है कि हमने उसे किस तरह उपयोग में लिया है। उदाहरण के लिए, पैसा जब तक हमारे लिए काम कर रहा है, तब तक अच्छा है। लेकिन अगर आप उसके प्रभाव में आकर मानवीय स्वभाव को भूलकर आचरण करने लगते है, तो यही पैसा अभिशाप बनने लगता है। यह आपके अंदर अहंकार भर, आपको अपनों से दूर कर देता है और व्यक्ति अक्सर सब कुछ होते हुए भी एकांकी जीवन जीने को मजबूर होता है। याद रखिएगा साथियों, किसी भी वस्तु या पदार्थ में समस्या नहीं होती है, अपितु हम उस वस्तु या पदार्थ का किस तरह उपयोग या प्रयोग करते हैं, वही असली समस्या की जड़ होता है। विष या ज़हर जो किसी की जान ले सकता है, वही सही मात्रा में प्रयोग में लाने में दवा का काम करता है।
इसलिए साथियों, अगर आप खुश और शांत रहते हुए अपना जीवन जीना चाहते हैं तो विवेक और संयम से वस्तुओं या चीजों का उपयोग करना सीखें। यही बात भोग या उपभोग करने वाली वस्तु पर भी समान रूप से लागू होती है। अगर विवेक और संयम से जगत का भोग किया जाए तो कहीं कोई समस्या नहीं है, लेकिन अगर आप भोग में बह गए तो समस्या ही समस्याएँ है। दूसरे शब्दों में कहा जाए दोस्तों, तो चीजों का बोध अर्थात् सही ज्ञान होना ही हमें इस जीवन को सही मायने में जीने में मदद कर सकता हैं। बोध ज्ञान से ही हम ख़ुशी-ख़ुशी इस भवसागर को पार कर सकते हैं। जी हाँ साथियों, हमें लोगों, वस्तुओं या संसार को छोड़ना नहीं, बस समझना है। जैसे ही आप इसे समझेंगे या इसका बोध करेंगे, आप उनके साथ सामंजस्य बनाते हुए शांत और खुश रहना सीख जाएँगे।
इसके विपरीत अगर आप किसी भी संसाधन का दुरुपयोग करते हैं अर्थात् बिना उसका बोध हुए उसे प्रयोग, उपयोग या उपभोग करते हैं तो आप अप्रत्यक्ष तौर पर ईश्वर की निंदा करते हैं। इसे आप इस उदाहरण से बेहतर तरीके से समझ पाएँगे, अगर आप किसी चित्र की निंदा या अनादर कर रहे हैं तो आप चित्र की नहीं चित्रकार की निंदा या अनादर कर रहे हैं। याद रखिएगा इस संसार में हर वस्तु उस परम पिता भगवान या ईश्वर की है। आपको बस उसका सही उपयोग या उपभोग करना सीखना है। अन्यथा हमें कभी परमात्मा की हज़ारों अनूठी और अनोखी देनों का भान ही नहीं हो पाएगा। जैसे, पेड़-पौधे, फल-फूल, नदी, सागर, पर्वत, झरने, अन्य जीव जंतु आदि-आदि।
जी हाँ साथियों, अगर हम इस दुनिया में मौजूद हर चीज़ का सही इस्तेमाल अर्थात् उसे कब, कहाँ, कैसे, क्यों और किस निमित्त उपयोग करना है, सीखना होगा। इस जीवन का असली मज़ा चीजों का बोध होने के बाद ही लिया जा सकता है। इस जीवन को सही मायने में जिया जा सकता है। दोस्तों, जीवन का यह सूत्र अगर हम समझ गए तो जीवन को महोत्सव बनने में देर न लगेगी।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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