Feb 12, 2023
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
दोस्तों, निश्चित तौर पर आप भी किसी ना किसी ऐसे बच्चे को ज़रूर जानते होंगे जो पढ़ाई से जी चुराता होगा या पढ़ाई के विषय में चर्चा करते समय अक्सर कहता होगा, ‘मुझे तो किताब हाथ में लेते ही नींद आ जाती है।’ या ‘जिन लोगों ने पढ़-लिख लिया है वो कौनसा तीर मार रहे हैं। ज़रा अपने आस-पास देखो जितने बेरोज़गार दिखेंगे वे सभी पढ़े-लिखे हैं।’ याने कुल मिला कर कहा जाए तो ऐसे लोगों के पास पढ़ाई नहीं करने का अपना बहाना या कारण रहता है।
लेकिन, शिक्षा के क्षेत्र में पिछले 15 साल से कार्य करते हुए मैंने पाया है कि परीक्षा का समय पास आते-आते ऐसे सभी लोग अपने आप पढ़ने लगते हैं या पढ़ने का प्रयास करने लगते हैं। सोच कर देखिएगा दोस्तों, इनको अचानक से पढ़ाई की महत्ता कैसे समझ आ गई? या पढ़ाई को लेकर इनके विचार अचानक से कैसे बदल गए? दूसरे शब्दों में कहूँ तो इन्होंने किस तरह अचानक से अपने मन को उस कार्य के लिए साध लिया, जिसके लिए वे पूरे वर्ष भर से मना कर रहे थे या जिसके लिए वे वर्ष भर से परेशान थे?
ठीक इसी तरह आपको हर क्षेत्र में अंतिम समय में कार्य को पूरा करने वाले लोग मिल जाएँगे। जैसे, कई लोग जीवन भर प्रयास करने के बाद भी बुरी आदतें नहीं छोड़ पाते हैं। लेकिन एक दिन डॉक्टर का अल्टीमेटम मिलते ही वे अचानक से अपनी सालों पुरानी आदत से दूरी बना लेते हैं। ठीक इसी तरह जिन्हें सेल्स पसंद नहीं होती ऐसे सेल्स मेन भी अंतिम समय में अपना टार्गेट पूरा कर लेते हैं। कुल मिला कर दोस्तों, इन सब उदाहरणों से मैं आपको सिर्फ़ एक बात समझाने का प्रयास कर रहा हूँ कि डेड लाइन पास आने पर लोगों की उत्पादकता याने प्रोडक्टिविटी या परफ़ॉरमेंस बढ़ जाता है। मेरी नज़र में यह परिवर्तन निम्न दो कारणों से आता है-
पहला - असफल होने का डर
इंसान एक सामाजिक प्राणी है अर्थात् वह समाज के बीच में रहना पसंद करता है। इसलिए वह अपनी छवि याने इमेज को लेकर हर पल सजग रहता है। यही सजगता उसके मन में असफलता का डर पैदा करती है और यह डर विपरीत परिस्थिति में उसे अपना सर्वश्रेष्ठ देने के लिए मजबूर करता है।
दूसरा - सुधरा हुआ फ़ोकस
जब आपको तेज़ भूख लगती है तब आप यह नहीं देखते हैं कि थाली में क्या है और वह कैसा बना है?, तब तो आप अपना पूरा ध्यान जो उपलब्ध है उसे तुरंत खाने में लगाते हैं। ठीक इसी तरह समय सीमा नज़दीक होने पर असफलता का डर हमारे अंतर्मन में अच्छे परिणाम की भूख जगाता है। अच्छे परिणाम की यह भूख आपको अपनी समस्त शक्तियों को उस वक्त की पहली प्राथमिकता या आवश्यकता पर फ़ोकस करने में मदद करती है।
वैसे दोस्तों, असफलता के डर की वजह से सुधरे हुए परिणाम को हम सकारात्मक दबाव का परिणाम भी मान सकते हैं। अगर बच्चों में हम इस सकारात्मक दबाव का प्रयोग किसी तरह पढ़ाई में रुचि पैदा करने के लिए कर लें, तो उन्हें इस परेशानी या तनाव से हमेशा के लिए बचाया जा सकता है। जो असम्भव भी नहीं है, विचार करके देखिएगा…
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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