Oct 24, 2022
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
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दोस्तों, सर्वप्रथम तो आप सभी को मेरी व ग्लोबल हेराल्ड परिवार की ओर से दीपावली की ढेर सारी शुभकामनाएँ। ईश्वर से मैं यही कामना करता हूँ कि दीपावली का यह प्यारा त्यौहार आपके जीवन में अपार ख़ुशियाँ और प्यार लेकर आए, आप सभी इस वर्ष अच्छे स्वास्थ्य के साथ सत चित आनंद अर्थात् सत्य का अनुभव कर सम्पूर्ण आनंद का लाभ उठाएँ। तो चलिए दोस्तों, आज हम लेख की शुरुआत एक ऐसे विचार से करते हैं जो हमारे जीवन को एक नई, सकारात्मक दिशा देकर, इस दीपावली को यादगार या यह कहना शायद ज़्यादा बेहतर होगा कि सार्थक बना पाएगा। तो चलिए शुरु करते हैं-
हम सभी अपने जीवन में सफल बनना चाहते हैं अर्थात् हम सभी के जीवन का लक्ष्य सफलता पाना ही होता है। लेकिन इसे पाना इतना आसान नहीं है क्यूँकि हमारा जीवन चुनौतियों और अवसरों से भरा है। दूसरे शब्दों में कहा जाए, तो सफलता केवल उन्हें ही मिलती है जो वास्तव में अवसरों को पहचान कर उसे हक़ीक़त में बदलने के लिए संघर्ष करते हैं, चुनौतियों का डटकर मुक़ाबला करते हैं। जी हाँ साथियों, कड़ी मेहनत, समर्पण, विश्वास और उत्साह सफलता की यात्रा का एकमात्र मंत्र हैं, इसके बिना इस दुनिया में कोई भी सफलता हासिल नहीं कर सकता है।
लेकिन आज की दुनिया में अक्सर देखा जाता है कि लोग इसे शॉर्टकट से पाना चाहते हैं और इसीलिए तमाम समझौतों के साथ अपना जीवन जीते हैं। मेरा मानना है कि अगर आप सफलता के साथ सुख, चैन और शांति भी पाना चाहते हैं तो आपको सफलता किसी भी क़ीमत पर नहीं बल्कि सही क़ीमत पर पाने के लिए कार्य करना होगा। अपनी बात को
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मैं आपको तमिल के महान कवि श्री कम्बन द्वारा तमिल में लिखी गई कंब रामायण के एक प्रसंग से समझाने का प्रयास करता हूँ।
जैसा हम सभी जानते हैं, भगवान श्री राम अपने पिता के दिए वचन का पालन करने के उद्देश्य से 14 वर्षों के लिए वनवास गए थे। वनवास के दौरान ही रावण द्वारा माँ सीता का हरण कर, लंका ले ज़ाया जाता है। इसके बाद भगवान राम अपने अनुज लक्ष्मण के साथ उनकी खोज प्रारम्भ करते हैं और इसी दौरान उनकी मुलाक़ात पहले अपने परम भक्त हनुमान से होती है। भगवान हनुमान उन्हें वानर राज सुग्रीव के बारे में बताते हुए कहते हैं कि वे आपके परमभक्त हैं। हे नाथ!, आप उनसे मित्रता कीजिए, साथ ही उन्हें दीन मान, भय मुक्त कर दीजिए। वे करोड़ों वानरों को चारों ओर भेज माता सीता की खोज करवाएँगे।
इसके बाद हनुमान जी ने भगवान श्री राम, लक्ष्मण और सुग्रीव की मुलाक़ात ऋष्यमूक पर्वत पर करवाई। जहाँ भगवान श्री राम ने सुग्रीव को बाली के डर से मुक्त करवाने का वचन दिया। इसके बाद ही सुग्रीव बाली को युद्ध के लिए ललकारता है और इसी युद्ध में भगवान श्री राम तीर चलाकर उसका वध करते हैं। तीर लगने के बाद मृत्यु से पहले बाली भगवान श्री राम से कहता है, ‘हे भगवान!, आप तो अंतर्यामी हैं, आपको तो पता ही हैं मैंने रावण को दो बार युद्ध में हराया है और उसे अपनी काँख अर्थात् बाँह में दबाकर पूरी दुनिया के दो चक्कर लगाए थे। आपको तो मुझे आदेश देना था, मैं तुरंत जाकर माँ सीता को वापस ले आता। लेकिन इसके विपरीत आपने मुझे मारकर सुग्रीव की मदद लेना उचित समझा। भगवान ऐसा कौन सा गुनाह किया था मैंने?’
वैसे दोस्तों, तार्किक आधार पर सोचा जाए तो बाली सही कह रहा था। अगर हम भी कभी किसी चुनौती, तकलीफ़, परेशानी या दुविधा में फँसते हैं तो हम सबसे पहले सक्षम से ही मदद माँगते हैं और सुग्रीव एवं बाली में से बाली अधिक सक्षम था। पूरी दुनिया में वही अकेला था जिसने रावण को हराया था। उससे मदद ना लेना वाक़ई एक चौकानें वाला फ़ैसला था। लेकिन दोस्तों, जैसा कहा गया है, ‘हरी अनंता, हरी कथा अनंता…’ उसी तरह उनकी सोच भी अनंत ही होती है। बाली द्वारा पूछे गए प्रश्न का उत्तर देते हुए भगवान श्री राम बोले, ‘बाली! मैं अधर्म पर धर्म की जीत का प्रतीक हूँ और अपने इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए मुझे बलशाली और दुराचारी की नहीं बल्कि सदाचारी व्यक्ति की ज़रूरत थी और सदाचारी तो तुम थे नहीं।
‘सदाचार’, यही तो वह चीज़ है दोस्तों, जो सफलता के साथ शांति, ख़ुशी और सुख-चैन को भी लेकर आती है। तो आईए, आज इस दीपावली पर हम प्रण लेते हैं कि आज से अपने जीवन को जीवन मूल्यों के आधार पर जिएँगे और उन्हीं के साथ सफल बनेंगे। एक बार फिर आप सभी लोगों को दीपावली की हार्दिक बधाई।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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