Nov 25, 2022
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
दोस्तों, मेरा मानना है इस दुनिया में ज़्यादातर लोग अपने सपनों को सिर्फ़ और सिर्फ़ इसलिए पूरा नहीं कर पाए क्यूँकि उन्होंने अपने विचारों पर अमल नहीं किया। जी हाँ साथियों, ईश्वर ने हमें सोचने, विचार करने की शक्ति देकर ही तो दूसरे जीवों से एकदम अलग या सबसे बेहतर बनाया है। इसीलिए तो इंसान को ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ कृति माना जाता है। वैसे इंसानों के विषय में एक बात और एकदम सत्य है कि ईश्वर उसे जीवन में एक ऐसा मौक़ा, एक ऐसा विचार ज़रूर देता है, जिसे आधार बनाकर अगर कार्य किया जाए तो वह अपने सपनों के जीवन को हक़ीक़त में बदल सकता है।
दोस्तों, अगर आप सफलता पाना चाहते हैं तो आपको सिर्फ़ एक बात को सुनिश्चित करना होगा कि शुभ और श्रेष्ठ कार्य केवल विचारों तक ही सिमट कर ना रह जाएँ। सफलता पाने या अपने सपनों को सच करने के लिए हमें उन्हें कार्य रूप में परिणित करना होगा। अपनी बात को मैं आपको एक बहुत ही प्यारी कहानी से समझाने का प्रयास करता हूँ।
सुदूर गाँव में दो दोस्त रमेश और सुरेश रहा करते थे। दोनों ही दोस्त बेरोज़गारी की वजह से काफ़ी परेशान चल रहे थे। एक दिन गाँव के पास स्थित झील के किनारे बैठ वे विचार कर रहे थे कि जीवन में सफल होने, बहुत सारा पैसा कमाने के लिए क्या किया जाए? काफ़ी देर तक विचार करने के बाद सुरेश ने एक सुझाव दिया, ‘क्यूँ ना हम एक भैंस ख़रीद कर लाएँ और उसके दूध को बाज़ार में बेच कर पैसे कमाएँ। धीरे-धीरे इन्हीं पैसों से हम एक की दो, दो की चार और चार की आठ भैंसें कर लेंगे और अगर सब कुछ ठीक चला तो कुछ ही सालों में हम अपनी डेयरी खोल लेंगे। फिर हमारे पास ढेर सारा पैसा, बड़ा बंगला और बड़ी गाड़ी भी होगी।
रमेश को सुरेश का विचार तो पसंद आया लेकिन साथ ही उसके मन में एक प्रश्न भी आया कि पहली भैंस का पैसा कहाँ से आएगा? उसने अपनी दुविधा तुरंत अपने मित्र सुरेश से साझा करी। प्रश्न सुनते ही सुरेश बोला, ‘यह कौन सी बड़ी बात है, हम अपने परिवार के सदस्यों या अन्य मित्रों से इस विषय में मदद मांग लेंगे?’ दोनों कुछ देर तक इसी विषय पर मंत्रणा करते रहे और फिर अंत में इस वादे के साथ विदा हुए कि दोनों दोस्त इस योजना पर कार्य करेंगे और आज से ठीक 7 साल बाद इसी स्थान पर फिर से मिलेंगे।
देखते ही देखते 7 वर्ष गुजर गए, अपने वादे के अनुसार रमेश, जो कि अब बहुत बड़ा व्यापारी बन चुका था, सूट-बूट पहनकर अपनी नई कार लेकर सुरेश से मिलने के लिए गाँव के पास स्थित झील के किनारे पहुँचा। सुरेश वहाँ पहले से ही मौजूद था, उसे देख रमेश अत्यंत प्रसन्न हो गया। वह दौड़ता हुआ उसके पास गया और गले मिलकर उसका हाल-चाल पूछने लगा। सुरेश, रमेश को सूट-बूट और कार में देखकर एकदम हक्का-बक्का था। इसलिए वह काफ़ी देर तक तो कुछ बोल ही नहीं सका। कुछ देर बाद जब वह थोड़ा सामान्य हुआ तो उसने अपने मित्र रमेश से पूछा, ‘प्रिय मित्र, तुम्हें इतना अमीर, इतना सफल देख मैं खुश होने के साथ हैरान भी हूँ। क्या तुम्हारी लॉटरी वग़ैरह लग गई है या फिर कहीं चोरी-डकैती डाल कर इतने पैसे वाले बन गए हो?’ सुरेश का प्रश्न सुन रमेश पहले तो मुस्कुराया फिर बोला, ‘मित्र, यह कैसी बात कर रहे हो? तुमने ही तो मुझे एक भैंस से सफल होने का सूत्र सिखाया था। तुम्हारी बताई योजना के अनुसार ही मैं यहाँ से सीधे अपने रिश्तेदार के यहाँ गया, उनसे पैसे उधार लिए और एक भैंस ख़रीद लाया। उसके बाद मैंने उसका दूध बाज़ार में बेचना शुरू किया और मिले मुनाफ़े से एक की दो, दो की चार भैंस करता हुआ, धीरे-धीरे यहाँ तक पहुँच गया। तुम्हारी बातों पर ही तो अमल कर मैं आज यहाँ तक पहुँचा हूँ। लेकिन मित्र तुम्हारे हाल इतने बेहाल क्यों हैं? क्या तुमने अपनी योजना पर अमल नहीं किया? तुम्हारा व्यापार कैसा चल रहा है?’ रमेश का प्रश्न सुन कुछ पलों के लिए सुरेश चुप रहा, फिर बड़े धीमे स्वर में बोला, ‘मित्र तुम्हारे समान ही मैं भी भैंस ख़रीदने के लिए पैसों का इंतज़ाम करने, एक रिश्तेदार के पास गया था। लेकिन उसके एक प्रश्न ‘अगर भैंस मर गई तो…’ ने मेरी सारी योजना पर पानी फेर दिया।
सुरेश की ही तरह दोस्तों, हममें से कई लोग ‘अपनी भैंस मार लेते हैं’ और फिर परेशानी में दोष देते हुए जीवन जीते हैं। एक बार विचार करके देखिएगा, अगर आप ही अपने विचार, अपनी क्षमताओं, अपने सपनों, अपने कार्यों पर प्रश्न उठाएँगे, तो और कौन आपकी इन बातों पर विश्वास करेगा या आपका साथ देगा। याद रखिएगा, जिस दिन शुभ विचार सृजन का रूप ले लेता है, उस दिन परमात्मा भी प्रसन्न होकर आपके ऊपर आशीष की वर्षा कर देता है।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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