June 6, 2022
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
आईए दोस्तों आज के लेख की शुरुआत एक बोध कथा से करते हैं। बात कई साल पुरानी है, गाँव में एक अनपढ़ सीधा-साधा व्यक्ति रहा करता था। एक बार उसने किसी की सलाह पर मुलतानी मिट्टी को दिल्ली ले जाकर बेचने का निर्णय लिया। उसने अपने कामगारों को बुलाया और गधों की पीठ पर मुलतानी मिट्टी के भरे हुए बोरे लादकर दिल्ली की ओर चल दिया।
राजस्थान के रेतीले इलाक़े से गुजरते वक्त रास्ते में पड़ने वाले गाँवों में उसकी बहुत सारी मुलतानी मिट्टी बिक गई। इस वजह से गधों की पीठ पर लदा मुलतानी मिट्टी का बोझ असंतुलित हो गया। अर्थात् गधे के एक तरफ भरे हुए मुलतानी मिट्टी के बोरे थे, तो दूसरी तरफ आधे से अधिक ख़ाली बोरे। इस असंतुलित बोझ के कारण कामगारों को, गधों को हांकने में परेशानी हो रही थी। जब यह बात व्यापारी को पता चली तो उसने कामगारों को ख़ाली बोरों में रेगिस्तानी बालू को भरने के लिए कहा।
कामगारों ने ख़ाली बोरों में रेगिस्तानी मिट्टी भरना शुरू ही करी था कि सामने से आ रहे एक राहगीर ने उस अनपढ़ व्यापारी से कहा, ‘मित्र, आप बोरे में इस तरह बालू क्यूँ भर रहे हैं?’ प्रश्न सुनकर अनपढ़ व्यापारी ने मुस्कुराते हुए कहा, ‘मैं मुलतानी मिट्टी लेकर व्यापार करने के लिए दिल्ली जा रहा था। लेकिन रास्ते में काफ़ी सारी मुलतानी मिट्टी बिक जाने की वजह से गधे पर बोझ असंतुलित हो गया है। इस असंतुलन को ठीक करने के लिए मैं बालू भरकर गधे के एक ओर टांग रहा हूँ।’ जिससे संतुलन बना रहे।
अनपढ़ व्यापारी की बात सुनकर वह राहगीर जोर से हंसा और बोला, ‘भाई आप लोग कैसा मूर्खतापूर्ण व्यवहार कर रहे हैं। संतुलन तो आप मुलतानी मिट्टी को दोनों और समान मात्रा में विभाजित करके भी बना सकते थे या फिर तुम आधे गधों के एक तरफ बंधे मुलतानी मिट्टी के बोरे को दूसरे गधे की कम वजन वाली साइड बांध सकते थे। इससे आधे गधों के दोनों ओर वजन बराबर हो जाता और वे संतुलित होकर चल पाते और आधे गधे अनावश्यक बोझ उठाने से बच जाते। वैसे भी इस रेगिस्तान में जहाँ चारों और रेत ही रेत है वहाँ तुमसे इसे कौन ख़रीदेगा?’
उस अनपढ़ व्यापारी को प्रथम दृष्टया राहगीर की बात सही लगी। वह अपने कामगारों को रेत ना भरने के विषय में बोलने ही वाला था कि उसे अपने गुरु के द्वारा दी गई एक सीख याद आ गई। उसने तुरंत उस राहगीर से प्रश्न किया, ‘मित्र, आप अभी कहाँ से आ रहे हैं और आप क्या करते हैं?’ प्रश्न सुनते ही राहगीर बोला, ‘मैं अभी दिल्ली से आ रहा हूँ और अपने गाँव जा रहा हूँ। मैं दिल्ली में व्यापार किया करता था। लेकिन कुछ ग़लत निर्णयों और बीमारी की वजह से व्यापार में हुए घाटे के कारण सब-कुछ लुटा चुका हूँ। सब ख़त्म होने के बाद मैंने सोचा कि अब गाँव जाकर खेती-बाड़ी करके घर चलाना ही बेहतर रहेगा। चलो अब मैं चलता हूँ, कहते हुए वह राहगीर अपने रास्ते पर आगे बढ़ गया।
उसके जाते ही वह अनपढ़ व्यापारी कामगारों से बोला, ‘चलो जल्दी-जल्दी रेत भरो, हमें इस राहगीर की सलाह नहीं माननी है।’ व्यापारी की आवाज़ सुनते ही कामगार दुविधा में पड़ गए और बोले, ‘मालिक वह राहगीर सही ही तो कह रहा था। आप आख़िर उसकी सलाह क्यूँ नहीं मानना चाहते?’ अनपढ़ व्यापारी मुस्कुराया और बोला, ‘हो सकता है तार्किक आधार पर वह राहगीर सही हो, लेकिन मुझे लगता है, जब उसकी सोच से उसके कार्य का नतीजा सही नहीं निकला तो क्या वह हमें सलाह देने के लिए उपयुक्त है? अगर उसकी सोच सही होती तो क्या वह अपने व्यापार में सब कुछ गँवाकर ख़ाली हाथ वापस जाता ?’
इतना कहकर व्यापारी ने कामगारों से गधों पर रेत भरवाई और आगे की यात्रा पर चल दिया। कुछ दिनों में दिल्ली पहुँचकर अनपढ़ व्यापारी ने रोड के पास मुलतानी मिट्टी और बालू रेती के दो अलग-अलग ढेर लगवाए और उन्हें बेचने लगा। एक दिन दिल्ली के महाराज की तबियत ख़राब होने पर वैध ने बालू रेती से सिकाई करने का सुझाव दिया। सुझाव सुनते ही राजा समेत सभी मंत्री और दरबारी परेशान हो गए। वे सोचने लगे रेत लेने अगर राजस्थान गए तो रेत लाने में कई दिन लग जाएँगे और इसका ख़ामियाज़ा राजा के स्वास्थ्य से चुकाना पड़ेगा।
अभी रेत को लेकर उनका विचार-विमर्श चल ही रहा था कि एक दरबारी ने महाराज को अनपढ़ व्यापारी के बारे में बताया। राजा ने तुरंत अपने महामंत्री को अनपढ़ व्यापारी से बालू रेती ख़रीदकर लाने के लिए कहा। राजा से आज्ञा लेकर महामंत्री तुरंत अनपढ़ व्यापारी के पास गया और उसे सोने की मुद्रा इनाम में देकर सारी बालू रेती ख़रीदकर ले आया।
दोस्तों अब थोड़ा सा सोचकर देखिए अनपढ़ व्यापारी को अतिरिक्त पैसा अपनी क़िस्मत या मौके की वजह से मिला या फिर बुद्धि की वजह से? मेरा मत है, बुद्धि की वजह से क्यूँकि उस राहगीर द्वारा दी गई सलाह तर्कसंगत तो लग रही थी लेकिन इस अनपढ़ व्यापारी ने अपनी व्यावहारिक बुद्धि अर्थात् कॉमन सेंस के आधार पर उसकी सलाह के विपरीत जाकर निर्णय लिया।
ठीक इसी तरह दोस्तों अगर आप अपने व्यापार, कैरियर अथवा किसी भी कार्य के लिए कोच या सलाहकार चुनने का निर्णय ले रहे हैं तो एक बार उनके जीवन की उपलब्धियों और उस क्षेत्र में उनके अनुभव को ज़रूर परख लीजिएगा। अन्यथा तार्किक आधार पर सही लगने वाली उनकी सलाह आपके लिए नुक़सानदायक सिद्ध हो सकती है।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
nirmalbhatnagar@dreamsachievers.com
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