Dec 08, 2022
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
आईए दोस्तों, आज के लेख की शुरुआत सोशल मीडिया पर पढ़ी एक ऐसी प्यारी सी कहानी से करते हैं जो हमारे जीवन को सकारात्मक दिशा दे सकती है। बात कई साल पुरानी है, एक गाँव में राम और श्याम नाम के दो पर्यावरण प्रेमी दोस्त रहा करते थे। नित्य सुबह उठकर गाँव के सभी पेड़-पौधों को खाद-पानी देना उनकी दिनचर्या का हिस्सा था।
एक दिन दोनों दोस्तों गाँव के पास स्थित जंगल में सैर के लिए गए। वहाँ के हालात देख दोनों दोस्तों के पैरो के नीचे से ज़मीन खिसक गई। असल में लकड़ी की कालाबाज़ारी कर ढेर सारे पैसे कमाने के लालच में तस्करों ने बहुत सारे पेड़ काट दिए थे। जंगल की बुरी हालात देख दोनों दोस्तों को बहुत दुःख हुआ। अचानक ग़ुस्से से भरा श्याम बोला, ‘देख राम इन लोगों ने हमारे जंगल का क्या हाल कर दिया। मैं छोड़ूँगा नहीं उन तस्करों को; मैं गाँव के हर व्यक्ति को उसके घर जाकर इस विषय में जागरूक करूँगा। आशा करता हूँ तुम मेरा साथ दोगे।’ श्याम की बात सुन राम मुस्कुराया और बोला, ‘तुम शुरू करो मैं जल्द तुम्हें जॉइन करता हूँ।’
राम का जवाब सुन श्याम चिढ़ता हुआ बोला, ‘जल्द जॉइन करता हूँ।’ का मतलब हुआ इतनी बड़ी घटना होने के बाद भी तुम हाथ पर हाथ धरे बैठना पसंद करोगे। लोगों को इस विषय में जागरूक करने, जंगल को बचाने में तुम्हारी कोई रुचि नहीं है। जो मन में आए वो करो… मैं तो चला अपना कार्य करने…’, इतना कहकर श्याम गाँव के मुखिया के पास पहुँचा और बोला, ‘मुखिया जी, आपको पता है तस्कर हमारे जंगल को काट कर खत्म कर रहे हैं। अभी तक उन्होंने सैकड़ों पेड़ काट डाले हैं। किसी तरह उनका पता लगाइए और उन्हें सजा दिलवाने में मदद कीजिए।’ मुखिया से मदद का आश्वासन पा श्याम ख़ुशी-ख़ुशी गाँव के घर-घर जाने लगा और उन्हें इस विषय में बताने लगा।
कई दिन बीत जाने के बाद एक दिन श्याम राम के पास पहुँचा और शिकायती लहजे में बोला, ‘मैंने अपनी ओर से सभी प्रयास कर लिए… पहले गाँव वालों को शिक्षित करा, मुखिया से बात करी, सब को समझाया लेकिन उसके बाद भी किसी को कोई फ़र्क़ नहीं पड़ा। अब मैं कल इस घटना की शिकायत करने कोतवाली जाऊँगा, क्या तुम मेरे साथ चलोगे?’ राम ने उसे ढाढ़स बँधाते हुए कहा, ‘मित्र मैं ज़रूर चलना चाहूँगा लेकिन हम सुबह नहीं दोपहर को चलेंगे।’
राम का जवाब सुन श्याम तुनकते हुए बोला, ‘समझ गया मैं, तुम मुझे टाल रहे हो। मैं सक्षम हूँ मैं अकेला इस कार्य को कर लूँगा।’ कहते हुए श्याम वहाँ से निकला और सीधे कोतवाली जा इसकी रपट लिखा आया। एक-दो दिन बाद ही श्याम के मन में आया, ‘क्यों ना इस घटना के विरोध में गाँव के मुख्य चौक पर धरना प्रदर्शन किया जाए?’ वह एक बार फिर अपनी योजना लेकर पहले गाँव वालों के पास पहुँचा। इस बार उसे कुछ तथाकथित सामाजिक कार्यकर्ताओं का समर्थन मिल गया। इससे श्याम बहुत खुश हुआ और बड़ा उछलता-कूदता राम के घर पहुँचा तो उसे पता चला कि राम तो इस वक्त जंगल गया हुआ है।
‘राम जंगल गया है’, सुनते ही श्याम के मन में तरह-तरह के विचार आने लगे। उसने उसी वक्त जंगल जाकर राम क्या कर रहा है देखने का निर्णय लिया। जंगल पहुँचने पर श्याम यह देख कर हैरान रह गया कि जहाँ-जहाँ से तस्करों ने पेड़ काटे थे, वहाँ-वहाँ राम ने नए पेड़ लगा दिए हैं और वह उन्हीं को खाद-पानी देने में व्यस्त है। आश्चर्य से भरे श्याम ने राम से बोला, ‘अरे तुम यह क्या कर रहे हो? अभी तो मैं सबको इस विषय में जागरूक भी नहीं कर पाया हूँ, इस घटना के विरोध में मैंने कल धरने का आयोजन किया है और एक तुम हो जो यहाँ पेड़ लगाने में अपना समय बर्बाद कर रहे हो। आख़िर तुम ऐसा क्यों कर रहे हो?’ श्याम का प्रश्न सुन राम एकदम गम्भीर स्वर में बोला, ‘क्योंकि श्याम, ख़ाली शिकायत करने, लोगों को जागरूक करने और धरने करने से जंगल में पेड़ वापस नहीं उग जाएँगे!’
दोस्तों, निश्चित तौर पर हमारे आस-पास आजकल ऐसी कई घटनाएँ घट रही हैं, जो पूरी तरह ग़लत हैं। जैसे, अनावश्यक रूप से हॉर्न बजाते हुए गाड़ी चलाना, ट्रैफ़िक नियमों का पालन ना करना, सड़क पर गंदगी फैलाना, गुटका खाकर चाहे जहाँ थूकना, बीच सड़क पर बेतरतीब गाड़ी खड़ी करना या चलना, सरकारी सम्पत्ति और पेड़ों को नुक़सान पहुँचाना आदि। इन सब को देख परेशान होना और शिकायतें करना, मेरी नज़र में सबसे आसान काम होता है और शायद इसीलिए इस विषय में बातें या शिकायत करते आपको कई लोग दिख जाएँगे। कुछ हद तक ऐसा करना मानवीय स्वभाव के अनुरूप स्वाभाविक भी है, लेकिन आप स्वयं सोच कर देखिएगा, ‘क्या सिर्फ़ चर्चा करने या लोगों को जागरूक करने से समस्या का समाधान होगा?’ बिलकुल भी नहीं… फिर अपनी सारी ऊर्जा, सारे संसाधन सिर्फ़ और सिर्फ़ शिकायत करने या इस विषय में चर्चा करने में क्यों बर्बाद किए जाएँ? साथियों अगर आप वाक़ई उपरोक्त समस्याओं से निजात पाना चाहते हैं तो सबसे पहले अपने अंदर यह झांक कर देखिए, ‘कहीं आप भी तो इस समस्या का हिस्सा नहीं हैं?’ अर्थात् आप भी इनमें से कोई गलती तो नहीं दोहरा रहे हैं अगर हाँ तो सबसे पहले उसे दूर कीजिए और उसके बाद स्वयं से पूछिए कि इस समस्या के समाधान के रूप में ‘मैं क्या कर सकता हूँ…’ बस इस प्रश्न का जो जवाब आए वो करना शुरू कीजिए।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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