June 17, 2022
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
दोस्तों, ज़िंदगी ज़िंदाबाद में हम आज बच्चों की शिक्षा और लालन-पालन जैसे महत्वपूर्ण विषय पर चर्चा करने वाले हैं। लेकिन चर्चा शुरू करने के पहले मैं आपसे कुछ सामान्य प्रश्न पूछना चाहूँगा। आशा करता हूँ आप उन सभी प्रश्नों के उत्तर पूरी गम्भीरता के साथ देंगे। तो चलिए शुरू करता हूँ-
क्या आप अपने बच्चे को सफल, आज्ञाकारी, संस्कारी और अनुशासित बनाना चाहते हैं? अगर हाँ, तो निश्चित तौर पर आप यह भी चाहते होंगे कि बच्चा स्वस्थ रहे, परीक्षा में अच्छे नम्बर लाए, बुद्धिमान बने, बड़े होने पर अच्छा कैरियर बनाए और सबसे महत्वपूर्ण बुढ़ापे में हमारा ख़्याल रखे और शायद इसीलिए हम उसे अच्छे से अच्छे विद्यालय में शिक्षा ग्रहण करने के लिए भेजते हैं। अपनी मेहनत की कमाई का एक बड़ा हिस्सा शिक्षा पर खर्च करते हैं।
लेकिन दोस्तों थोड़ा गम्भीरता के साथ सोचकर देखिए, हमें आजकल यह सब करने के बाद मिल क्या रहा है। आजकल बच्चे आक्रामक, ग़ुस्सैल और चिड़चिड़े होते जा रहे हैं। आज बच्चों में विश्वास की भावना दूर-दूर तक दिखाई नहीं देती है। विद्यालय को परिवार से, तो परिवार को विद्यालय से समस्या है क्यूँकि दोनों को ही शोषण या कुछ ग़लत हो जाने का डर लगता है। इतना ही नहीं विद्यालय और घर दोनों ही उसे भविष्य में कॉम्पिटिशन के लिए तैयार करने, उसे सफल बनाने के लिए इतने प्रयोग कर रहे हैं । बच्चों में आजकल डिप्रेशन ही नहीं, खुद को नुक़सान पहुँचाने की प्रवृति तक नज़र आने लगी है। थोड़े से बड़े बच्चों की बात करूँ तो दोस्तों, वे भावनाओं से अधिक तकनीक के क़रीब हो गए हैं। उनके लिए आभासी दुनिया, असली दुनिया से ज़्यादा महत्वपूर्ण होती जा रही है। कुल मिलाकर संक्षेप में कहा जाए तो ऐसा लगता है, जैसे, आज की पीढ़ी का बचपन ही कहीं गुम हो गया है।
मैं आप ही से पूछना चाहूँगा, बच्चों की इस हालात के लिए असली ज़िम्मेदार कौन है? मेरी नज़र में तो निश्चित तौर पर पालक, समाज, विद्यालय और हमारी सामाजिक व्यवस्था। जी हाँ साथियों, असल में उस बच्चे को समझदारी के साथ बड़ा करने की ज़िम्मेदारी हमारी ही तो थी। अगर आज बच्चों में नकारात्मक भाव ज़्यादा नज़र आ रहे हैं तो यह समाज के रूप में हमारी असफलता है। असल में समय से पहले उन्हें बड़ा या विशेष योग्यता का धनी बनाने के प्रयास में हम उनका बचपना या स्वाभाविक तौर पर सीखने की क्षमता को ही खत्म या प्रभावित कर चुके हैं।
दोस्तों अगर आप अपने बच्चे को उपरोक्त बातों से बचाना चाहते हैं तो आपको सबसे पहले अपने लालन-पालन और शिक्षित बनाने के तरीके को बदलना होगा। हमें एक ऐसी शिक्षा पद्धति या लालन-पालन के तरीके को अपनाना पड़ेगा जो बच्चों को उनकी उम्र और सीखने की क्षमता के आधार पर सही शिक्षा दे सके, वह भी बिना दबाव और तनाव के। इसके लिए साथियों आपको सीखने के चक्र को समझना होगा। हमारा सीखना माँ के गर्भ से शुरू हो जाता है। वैसे भी हमने महाभारत की कथा में सुना था कि अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु ने माँ के गर्भ में सीखकर कौरवों द्वारा बनाए गए चक्रव्यूह को भेदा था। वैसे विज्ञान भी इस बात को मानता है कि हम माँ के गर्भ में रहते हुए सीखना शुरू कर देते हैं और यह सीख स्थायी अर्थात् परमानेंट होती है। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो माँ के गर्भ में हम जो भी सीखते है वह कभी भूलते नहीं हैं। लेकिन गर्भ में आप क्या सीखेंगे, यह आपके हाथ में नहीं है।
हमारे जीवन में सीखने का दूसरा चक्र 0 वर्ष से 14 वर्ष की आयु में सबसे अधिक महत्वपूर्ण होता है क्यूँकि रिसर्च का एक आँकड़ा बताता है कि हम अपने पूरे जीवन में जो भी सीखते हैं, उसका 90 प्रतिशत इस आयु में सीखते हैं। थोड़ा और गहराई में उतरकर देखा जाए तो साथियों इस 90 प्रतिशत का भी 90 प्रतिशत हम शून्य से 7 वर्ष की आयु तक सीख जाते हैं। इस उम्र की सीख स्थायी के निकट होती है अर्थात् इस उम्र में सीखी गई बातों को थोड़े से प्रयास के साथ हमेशा याद रखा जा सकता है।
14 वर्ष के बाद हमारे पूरे जीवन में सीखने का तीसरा चक्र चलता है। इस चक्र में सीखी गई बातें अस्थायी शिक्षा अर्थात् टेम्परेरी लर्निंग होती है। इसे हम अपने मन या दिमाग़ की कंडीशनिंग से भी जोड़कर देख सकते हैं। सीधे शब्दों में कहा जाए तो हम जब तक इन बातों को काम में लेते हैं, यह तभी तक हमें याद रहती है। जैसे ही आप इन्हें काम में लेना छोड़ते हैं, आप इन्हें धीरे-धीरे भूलना शुरू कर देते हैं।
उपरोक्त आधार पर देखा जाए तो दोस्तों जन्म के प्रथम 7 वर्ष बच्चों को शिक्षित, सुखी, शांत, सफल और खुश बनाने के लिए सबसे महत्वपूर्ण होते हैं। कल हम इस उम्र में कैसी शिक्षा दी जाए इस विषय पर चर्चा करेंगे।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
nirmalbhatnagar@dreamsachievers.com
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