Sep 7, 2022
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
हाल ही में काउन्सलिंग के दौरान माता-पिता की अपने बारे में प्रतिक्रिया सुन एक छात्रा मुझसे बोली, ‘सर, माँ-पापा जो कह रहे हैं, वो बिलकुल भी सही नहीं है। मैं अपनी ओर से पूरा प्रयास करती हूँ, लेकिन उसके बाद भी सफल नहीं हो पाती हूँ। असल में मेरी क़िस्मत बड़े भाई जितनी अच्छी नहीं है। भाई ने आज तक जो भी सोचा है, पाया है। इसके विपरीत मुझे तो साधारण से भी साधारण चीज़ के लिए स्ट्रग़ल करना पड़ता है। कितनी भी योजना बना लो, मेहनत कर लो, बिना अटके कोई कार्य पूरा ही नहीं होता।’
वह बिना रुके या यह कहना ज़्यादा उचित होगा कि बिना साँस लिए अपनी बात कहती ही जा रही थी। वह कभी परिस्थिति को दोष देती, तो कभी अपने लालन-पालन के तरीके को, तो कभी शिक्षा को। अर्थात् उस बच्ची की पूरी बातें शिकायत, दोष, आरोप जैसे नकारात्मक भावों पर आधारित थी और उसकी बातों में निराशा साफ़ झलक रही थी। मात्र 23 वर्ष की उम्र में उसका इतना निराश होना, सही नहीं था। जब मैंने उससे कुछ और बिंदुओं पर चर्चा करी तो मुझे एहसास हुआ कि उसको मिलने वाली तात्कालिक असफलता के लिए उसकी क़िस्मत नहीं, बल्कि उसकी सोच ज़िम्मेदार थी। ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूँ क्यूँकि बातचीत के दौरान उसने ज़्यादातर नकारात्मक शब्दों का चयन किया था जो उसकी नकारात्मक सोच या मानसिकता को दर्शा रहा था और यही नकारात्मक मानसिकता उसे ज़्यादा परेशान कर रही थी।
दोस्तों, जब आप नकारात्मक शब्दों का अधिक प्रयोग करते हैं, तब आप अपने विचारों को, अपने मन को अधिक नकारात्मक बनाते हैं और जब आप इन्हीं नकारात्मक बातों को और अधिक दोहराते हैं तो यह सामान्यतः आपको और अधिक नकारात्मकता की ओर ले जाती है। कंडिशनल या एक जैसे पैटर्न में सोचना आपको एक जैसे परिणाम ही देता है। इसके विपरीत किसी भी स्थिति या परिस्थिति के बारे में अधिक सकारात्मक सोचना आपके अंदर कृतज्ञता का भाव पैदा करता है। इसका अर्थ हुआ अगर आप जीवन में मिलने वाले परिणामों को बदलना चाहते हैं, तो सबसे पहले आपको कंडिशनल या पैटर्न वाली सोच को बदलना होगा और यह ईश्वर के प्रति समर्पण के भाव के बिना नहीं होगा। अर्थात् हमें अपने अंदर एक स्वीकारोक्ति का भाव जगाना होगा कि जीवन में जो भी घट रहा है, ईश्वर की हमको बेहतर बनाने की योजना का हिस्सा है और मैं इसे पूरी कृतज्ञता के साथ स्वीकारता हूँ। जी हाँ साथियों, अपनी सोच को बदलने का सबसे बेहतरीन तरीक़ा है, जीवन में मिलने वाले हर परिणाम को ईश्वर को सौंप देना, अर्पण कर देना। जब आप परिणाम को ईश्वर पर छोड़ देते हैं, तब आपकी प्रार्थनाएँ बदल जाती हैं और आप कंडिशनल सोच या पैटर्न से बाहर निकल जाते हैं। कृतज्ञता के भाव में रहना आपको अधिक रचनात्मक सोचने का मौक़ा देता है, आपकी एकाग्रता बढ़ाकर आपकी उत्पादकता को बढ़ाता है।
दोस्तों, जब भी आप खुद को ज़्यादा असहज महसूस करें, तुरंत समझ जाएँ कि इस वक्त आप नकारात्मक विचारों से घिरे हुए हैं। ऐसी स्थिति में अपने मन में गुज़रने वाले वास्तविक विचार को पहचाननें, उसे पकड़ने का प्रयास करें क्यूंकि वास्तविक विचार आपके अंदर ख़ुशी पैदा करेंगे, आपके अंदर ‘आहा’ वाले भाव पैदा करेंगे। तो आईए, आज से अपने जीवन को बेहतर बनाने के लिए रोज़ कृतज्ञ रहने और सकारात्मक सोच रखने का अभ्यास करते हैं। याद रखिएगा, मस्तिष्क का जो हिस्सा हमारी भावनाओं और व्यवहार को नियंत्रित करता है वही हिस्सा फोकस और ध्यान जैसे उच्च-क्रम के सोच कौशल को भी नियंत्रित करता है। चूँकि हमारा मस्तिष्क, हमारा मन लचीला होता है इसलिए वह परिवर्तन को तुरंत स्वीकारता है। इसलिए कितनी भी विपरीत स्थितियाँ क्यूँ ना हो, आप सकारात्मक सोच को जीवन जीने का एक तरीका बना सकते है। जब आपका मस्तिष्क सकारात्मक विचारों से भरा होता है, तो आप अपने जीवन के हर क्षेत्र में सुधार की उम्मीद कर सकते हैं। जैसे आपके रिश्ते, स्वास्थ्य, स्कूल, कार्यालय, व्यवसाय में प्रदर्शन, अपने सपनों और लक्ष्यों तक पहुंचना आदि।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
nirmalbhatnagar@dreamsachievers.com
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