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Writer's pictureNirmal Bhatnagar

सुखी जीवन का रहस्य…

June 17, 2023

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, इस दुनिया के सर्वोत्तम पेशे की बात की जाए, तो वह मेरी नज़र में टीचिंग है क्योंकि मेरी नज़र में यह दुनिया का एकमात्र ऐसा पेशा है, जिसमें आप अपने भविष्य का निर्माण करते-करते, लोगों का जीवन बनाते जाते हैं। इतना ही नहीं, यह पेशा आपको रोज़ कुछ नया सीख कर जीवन को बेहतर बनाने का मौक़ा देने के साथ-साथ ऊर्जावान रहने का मौक़ा भी देता है। इसकी मुख्य वजह लगातार युवाओं के बीच रहना है। इसी वजह से मुझे जब भी मौक़ा मिलता है, मैं बच्चों के बीच पहुँचकर खुद को रीचार्ज कर लेता हूँ और कुछ नया सीख लेता हूँ।


ऐसा ही एक मौक़ा मुझे हाल ही में इंदौर में उस वक्त मिला जब मुझे युवाओं के एक समूह को सम्बोधित करने का मौक़ा मिला। अपने उद्बोधन में जब में कर्म और संतोष पर बोल रहा था तब एक युवा ने मुझसे बड़ा मज़ेदार प्रश्न पूछते हुए कहा, ‘सर, थोड़ी देर पहले आप कर्म पर जोर दे रहे थे और अब बता रहे हैं कि संतोष ही सफलता की कुंजी है। जब हमें परिणाम की चिंता करे बिना संतोष करके क़िस्मत के भरोसे ही बैठना है तो फिर हम मेहनत (कर्म) क्यों करें?’


तार्किक आधार पर देखा जाए तो पहली नज़र में उस युवा की बात एकदम सही प्रतीत होती थी और शायद इसी वजह से यह कई लोगों के मन में हो सकती है। मैंने उसी पल उस बच्चे की धारणा को तोड़ने का निर्णय लिया और उसे समझाने का प्रयास किया कि ऐसा लगने की मुख्य वजह इस पूरे चक्र पर समग्र रूप से विचार ना करना है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए मैंने बात आगे बढ़ाते हुए उस बच्चे से कहा, ‘तुम मेरी बात का ग़लत अर्थ लगा रहे हो। संतोष रखने का अर्थ यह नहीं है कि आप अपने लक्ष्य को पाने के लिए प्रयास करना बंद कर दे और बिना कर्म किए जो भी परिणाम मिले उसमें संतोष करके रह लें। असल में संतोष कर्म या मेहनत ना करने का दूसरा नाम नहीं है अपितु प्रयत्न करने के बाद जो भी मिला है उसे पूरे दिल के साथ स्वीकार कर, खुश रहने का नाम है।’


जी हाँ दोस्तों, अक्सर ज़्यादातर लोग संतोष का अर्थ अपने फ़ायदे के अनुसार लगाते हैं और अपनी अकर्मण्यता अर्थात् मेहनत ना करने की प्रवृति या प्रयास ना करने को संतोषी होने का नाम दे देते हैं। ऐसे लोगों से मेरा एक ही प्रश्न रहता है, ‘ऐसा करके आप किसको धोखा दे रहे हो? खुद को ही ना! अगर हाँ तो फिर आपका संतोषी रहने का तरीक़ा आपको लाभ नहीं पहुँचाएगा अपितु बीतते समय के साथ आपके अंदर नकारात्मकता को बढ़ाकर आपकी ऊर्जा को खा जाएगा।


इसलिए ऐसे लोगों को मेरा सुझाव है कि अगर आप अपने जीवन में आगे बढ़ना चाहते हो, सफल, सुखी और शांत रहना चाहते हो, तो प्रयत्न करने याने मेहनत, पुरुषार्थ या फिर उद्यम करने में असंतोषी रहो। अर्थात् अपनी मेहनत, अपने प्रयास को उस सीमा तक ले जाओ जिसके आगे विचार करना भी संभव ना हो। इस भागीरथी प्रयास के दौरान आपको बस अपने लक्ष्य को हर पल याद रखना है। याने एक क्षण के लिए भी अपने लक्ष्य को नहीं भूलना है। इसके पश्चात आप कौन हो, यह आपके शब्द नहीं आपके कर्म बोलेंगे। याने आपके कर्म, आपकी सफलता इस दुनिया से आपका परिचय करवाएगी।


जी हाँ दोस्तों, मेरी नज़र में तो सफलता के साथ शांत और सुखी रहने का यही एकमात्र तरीक़ा है। इसलिए जब भी मेहनत करो, यह सोच कर करो कि सारे कार्य की ज़िम्मेदारी सिर्फ़ और सिर्फ़ मुझ पर है। सब कुछ मुझ पर ही निर्भर है, इस भाव का होना आपके कर्म को सही दिशा में रखेगा, आपको अपनी छुपी हुई क्षमताओं को पहचान कर सर्वश्रेष्ठ देने का मौक़ा देगा। इसके पश्चात याने पूरी क्षमता और मेहनत से कर्म करने के बाद, सब कुछ ईश्वर पर निर्भर है, इस भाव को ले आओ। ऐसा करना आपको हर तरह के परिणाम को प्रेम से स्वीकार करने में मदद करेगा। जी हाँ साथियों, कर्म करने में सावधान रहना और होने के बाद मिलने वाले परिणाम में प्रसन्न रहना ही सुखमय जीवन का रहस्य है।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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