सुनना, दूसरों को नहीं, ख़ुद को जानने का साधन है !!!
- Nirmal Bhatnagar
- 15 minutes ago
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Apr 27, 2025
फिर भी ज़िंदगी हसीन है...

दोस्तों, कुछ दिन पूर्व हमने “सुनना भी एक कला है!!!” विषय पर चर्चा की थी। जिसमें हमने जाना था कि सुनने के तीनों स्तरों में गहन सुनना याने डीप सुनना ही सर्वश्रेष्ठ है क्योंकि इस स्तर पर ही आप सामने वाले के शब्दों को सभी पूर्वाग्रहों को छोड़, अपने पूरे मन, बुद्धि और हृदय के साथ सुनते हैं। आइए आज मैं आपको भगवान गौतम बुद्ध की एक कहानी के माध्यम से गहन या डीप सुनने के लाभ के विषय में थोड़ा विस्तार से बताता हूँ।
तमाम प्रयासों के बाद भी एक युवा अपने जीवन की चुनौतियों से निपट नहीं पा रहा था। इस वजह से उसके अंदर काफ़ी नकारात्मकता बढ़ गई थी। एक दिन उसने जीवन की समस्याओं से अत्यंत दुखी होकर इस विषय में बुद्ध से चर्चा करने का निर्णय लिया और भगवान बुद्ध के स्थान पर पहुँच गया। दैनिक धार्मिक परिचर्चा के पश्चात् इस युवा ने भगवान बुद्ध से अपने दुख-दर्द साझा करना शुरू किया। भगवान बुद्ध, चुपचाप, बिना कोई प्रतिक्रिया दिए, उसे पूरे धैर्य और करुणा के साथ सुनते रहे।
काफ़ी देर तक लगातार अपनी बात कहते रहने के बाद युवा आश्चर्य के साथ बोला, “भगवन्, इस पूरे वार्तालाप में आपने कुछ भी नहीं कहा, लेकिन उसके बाद भी मैं एकदम हल्का महसूस कर रहा हूँ। यह कैसा चमत्कार है?” युवा की बात सुन बुद्ध मुस्कुराए और बोले, “वत्स! इसमें कोई चमत्कार नहीं है। मैंने तो बस तुम्हें पूरी तरह तल्लीनता के साथ सुना है। कभी-कभी सुन लिया जाना ही सबसे बड़ी राहत है।”
दोस्तों, सुनने में साधारण सी लगने वाली यह बात असल में काफ़ी महत्वपूर्ण है क्योंकि सच्चा सुनना याने गहन या डीप सुनना किसी को केवल समझने का जरिया या कार्य नहीं है, यह तो सामने वाले को पीड़ा मुक्त करने का एक उपाय भी है। जी हाँ दोस्तों, अगर हम सही मायने में गहन या डीप सुनना सीख जाएं तो आपसी रिश्तों में आने वाली अनेक परेशानियों से बचा जा सकता है।
दोस्तों, अगर आप गहन याने डीप सुनने की क्षमता को विकसित करना चाहते हैं तो मेरा सुझाव है कि आप आज से ही स्वयं चिंतन अभ्यास याने सेल्फ रिफ्लेक्शन एक्सरसाइज करना प्रारंभ कर दीजिए। इसके लिए आपको प्रतिदिन निम्न गतिविधियों को करना है-
१) आज एक व्यक्ति को बिना टोके, पूरी उपस्थिति के साथ सुनिए
याद रखियेगा, इस बातचीत के दौरान आपको सिर्फ़ अपने मन में उठने वाले विचारों को केवल देखना है, किसी भी प्रकार की कोई प्रतिक्रिया नहीं देना है। जब सामने वाले की बात पूरी हो जाये उसके कुछ क्षणों बाद अपनी बात रखें।
२) दिन के अंत में स्वयं से ये प्रश्न पूछें:
- क्या मैं सचमुच पूरे मन से सुन पाया/पाई?
- क्या मैं बीच में कूद पड़ा/पड़ी? अगर हाँ, तो क्यों?
- जब मैंने शांत होकर सुना, तो सामने वाले ने कैसा महसूस किया?
३) अगले दिन के लिए संकल्प लें कि “कल मैं हर व्यक्ति को उसकी बात पूरी करने का पूरा अवसर दूँगा/दूँगी।”
यकीन मानियेगा दोस्तों, उपरोक्त तीनों प्रश्न आपको सुनने की कला में माहिर बना देंगे। इसके अतिरिक्त प्रतिदिन कम से कम किसी एक व्यक्ति को इस भावना के साथ सुनें कि “मैं तुम्हें तुम्हारी पूरी अच्छाई के साथ देखना और समझना चाहता/चाहती हूँ।” याद रखियेगा दोस्तों, सुनना केवल दूसरों को नहीं, बल्कि स्वयं को जानने का भी एक सशक्त साधन है।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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