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सेवा वही जो हृदय से की गई…

Writer's picture: Nirmal BhatnagarNirmal Bhatnagar

Nov 24, 2022

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…


दोस्तों, हाल ही में एक ऐसा अनुभव हुआ जिसको बता या समझा पाना भी मेरे लिए मुश्किल है। एक प्रतिष्ठित मीडिया समूह से मेरे पास एक फोन आया और उन्होंने मेरे द्वारा किए जा रहे छोटे-मोटे कार्यों की सराहना करते हुए मुझसे एक व्यक्ति विशेष से मिलने का निवेदन किया। मैं यह सोच कर बहुत खुश था कि मेरे द्वारा किया जा रहा छोटा सा कार्य अब बड़े लोगों का ध्यानाकर्षण कर रहा है। मैं पूरी ऊर्जा, उत्सुक्ता और शायद थोड़े अहम के साथ उन सज्जन से मिलने तय स्थान पर पहुँच गया।


बातचीत और परिचय के शुरुआती दौर के पश्चात मिलने आए सज्जन ने अपने द्वारा समाज के उत्थान के लिए किए जा रहे कामों के बारे में बताना शुरू किया, तो मैं हैरान रह गया। मेरा अहम कुछ ही पलों में रफ़ूचक्कर हो गया और मेरे ‘मैं’ का स्थान सामने बैठे सज्जन के प्रति आदर के भाव ने ले लिया। मैं सोच रहा था, जो व्यक्ति निश्चल भाव से ग़रीबों के लिए रहने, खाने, स्वास्थ्य, शिक्षा आदि का प्रबंध कर रहा है, वह कितनी बड़ी मानव सेवा कर रहा है। लेकिन मेरा यह भाव कुछ ही पलों में उस वक्त रफ़ूचक्कर हो गया जब खाने की मांग लेकर आए एक गरीब को उन्होंने दुत्कार कर भगा दिया। वह उनके लक्ष्य में ख़लल जो डाल रहा था। असल में साथियों, उनका मुझसे मिलने का उद्देश्य स्वयं पर एक लेख लिखवाना था, जिससे वे समाज को बता सकें कि वे कितने सेवाभावी इंसान है और उनकी इसी महत्वपूर्ण चर्चा को उस भूखे-गरीब ने बीच में डिस्टर्ब कर दिया था।


असल में दोस्तों, अच्छे कार्य को समाज के बीच में ले जाना ग़लत नहीं है। लेकिन समाज को दिखाने, पुण्य कमाने, प्रसिद्धि और आदर पाने के लिए अथवा खुद के अहम को संतुष्ट करने के लिए सेवा कार्य कर, उसे प्रचारित करना या उससे पुण्य की आशा रखना उचित नहीं है। अपनी बात को मैं हाल ही में पढ़ी एक कहानी से समझाने का प्रयास करता हूँ।

राजा भोज अपनी प्रजा का ध्यान रखने अर्थात् अच्छा राज-काज चलाने के साथ बहुत दान, पुण्य, यज्ञ, व्रत, तीर्थ, कथा-कीर्तन आदि किया करते थे। अपने शासन काल में उन्होंने अनेक तालाब, मंदिर, कुँए, बगीचे आदि भी बनवाए थे। इसी वजह से राजा भोज के मन में अभिमान आ गया था। वे स्वयं को बहुत बड़ा दानी, सेवाभावी और महान मानने लगे थे। एक दिन रात्रि को जब राजा भोज गहरी निद्रा में थे, तब उन्हें स्वप्न में एक बहुत ही बुजुर्ग लेकिन तेजस्वी सज्जन अपने समक्ष खड़े प्रतीत हुए। राजा भोज ने जब उनसे उनका परिचय पूछा तो उस वृद्ध ने कहा, ‘राजन, मैं सत्य हूँ और तुम्हें, तुम्हारे द्वारा किए गए कार्यों का वास्तविक रूप दिखाने आया हूँ। कृपया कर आप मेरे पीछे-पीछे आएँ।’ इतना कहकर वृद्ध पुरुष राजा भोज को उनकी नगरी में हर उस स्थान पर ले जाने लगे जिन्हें प्रजा के हितों को ध्यान रख, राजा भोज ने ही बनवाया था।


सबसे पहले सत्य रूपी वृद्ध पुरुष महाराज को उन्हीं के द्वारा बनवाए गए मंदिर लेकर गए। मंदिर को देख महाराज एकदम प्रसन्न हो गए और उसके बारे में बढ़ा-चढ़ा कर बताने लगे। महाराज की बात सुन सत्य रूपी वृद्ध ने मुस्कुराते हुए उस मंदिर को छुआ और उनके छूते ही वह सुंदर सा मंदिर खंडहर में बदल गया। इसके बाद सत्य ने एक-एक कर यज्ञ स्थान, तीर्थस्थान, कथा एवं पूजन स्थल, दान आदि के लिए बने स्थान आदि चीजों को छुआ, वे सब भी खंडहर में बदलने लगी। यह देख राजा भोज एकदम विचलित हो गए, उन्हें समझ ही नहीं आ रहा था कि यह सब चल क्या रहा है।


राजा भोज ने प्रश्नवाचक निगाहों के साथ वृद्ध रूपी सत्य को हाथ जोड़ते हुए कहा, ‘महात्मन, मैं आपकी माया, उसमें छिपे संदेश को समझ नहीं पाया हूँ, कृपया मुझे इसका अर्थ समझाने की कृपा करें।’ बुजुर्ग रूपी सत्य ने गम्भीर मुद्रा धारण कर कहा, ‘राजन, यश, प्रसिद्धि, स्वार्थ सिद्धि, पुण्य और प्रचार-प्रसार के लिए किया गया कार्य सिर्फ़ अहंकार या अहम को संतुष्ट करता है, धर्म का निर्वहन नहीं। सच्ची सद्भावना से निस्वार्थ होकर, कर्तव्य के बोध के साथ जो कार्य किए जाते हैं, सिर्फ़ वे ही सच्ची सेवा या पुण्य कर्म होते हैं, यही पुण्य फल का रहस्य है।’ इतना कहकर बुजुर्ग रूपी सत्य अंतर्धान हो गए। तभी राजा भोज की निद्रा टूटी और उन्होंने इस इस विषय पर गम्भीरता से विचार किया और फिर सच्ची भावना से कर्म करना प्रारंभ किया।


दोस्तों, आज हम सभी जानते हैं कि राजा भोज को सच्चाई की भावना से किए गए कर्म के कारण कितनी यश और कीर्ति प्राप्त हुई और निश्चित तौर पर उन्होंने इसी वजह से ढेर सारा पुण्य भी कमाया होगा। याद रखिएगा, प्रसिद्धि पाने, सुर्ख़ियों में बने रहने अथवा किसी भी निजी हित को साधने के लिए किया गया सेवा कार्य, पुण्य नहीं देता है। असली पुण्य तो हृदय से की गयी सेवा से ही उपजता है, फिर चाहे उस सेवा का लाभ हज़ारों को मिला हो या फिर सिर्फ़ किसी एक व्यक्ति को!


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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