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सोचना, सुनना और बोलना सीख कर बनाएँ जीवन बेहतर…

Writer's picture: Nirmal BhatnagarNirmal Bhatnagar

Aug 23, 2022

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, अगर आप अपने जीवन को और बेहतर बनाना चाहते हैं, तो मेरी नहीं मेरे गुरु की सलाह मानकर मात्र तीन कलाएं सीख लीजिए। पहली कैसे सोचें, दूसरी कैसे सुनें और तीसरी कैसे बोलें। जी हाँ दोस्तों, वाक़ई छोटे से दिखने वाले उपरोक्त तीनों कार्य इतने महत्वपूर्ण हैं, इसका एहसास मुझे तब हुआ जब मेरी माँ के प्रश्न पूछने पर मेरे गुरु ने इसे गहराई से समझाया। असल में दोस्तों कानों का प्रयोग करना सुनना या मुँह का प्रयोग कर आवाज़ निकालना, बोलना नहीं होता। ठीक इसी तरह की गलती हम सोचने में भी करते हैं। उदाहरण के लिए मान लीजिए आपसे कोई कुछ कहता है, उसकी आवाज़ हमारे कानों से होते हुए हमारे दिमाग़ में जाती है और हमारा दिमाग़ तुरंत उसका क्या जवाब दें, सोचने लगता है। सोचने का कार्य पूरा होते ही हमारा मुँह उस सोचे हुए तार्किक जवाब को बोल देता है।

अब मेरा प्रश्न है दोस्तों, उपरोक्त कार्य करने के तरीके से क्या हम इस संवाद के उद्देश्य को पूरा कर पाए? शायद नहीं, क्यूँकि हमने जो शब्द सुने थे, उसी पर विचार कर जवाब दिया था और इस प्रक्रिया में हम यह भूल गए कि सामने वाले के शब्द उसके और हमारे बीच के रिश्ते, पूर्व के अनुभव, उद्देश्य अथवा धारणा के आधार पर थे। अपनी बात को मैं आपको एक कहानी के माध्यम से समझाने का प्रयास करता हूँ।

बात कई साल पुरानी है, एक बार रामगढ़ के राजा अपनी बग्घी पर सवार होकर शहर भ्रमण के लिए निकले। वे अभी अपने क़िले के द्वार तक पहुंचे ही थे कि उन्होंने द्वार के समीप एक भिखारी को खड़ा हुआ देखा। भिखारी के हालात बहुत ही दयनीय थे। उसके कपड़े एकदम फटे हुए या यह कहना बेहतर होगा उसने चीथड़ों से किसी तरह अपने बदन को ढका हुआ था। उसके शरीर की एक-एक हड्डी साफ़ नज़र आ रही थी। ऐसा लग रहा था मानो उसने कई दिनों से कुछ भी खाया हुआ नहीं था। अगर उसकी शारीरिक स्थिति के आधार पर कहा जाए तो उसको देखकर यह अंदाज़ा लगाना भी मुश्किल था कि वह खड़ा कैसे है? ऐसा लग रहा था मानो अब गिरा, कि तब गिरा। हालाँकि इतना सब होने के बाद भी उसकी आँखों में चमक थी। ऐसा लग रहा था मानो वह बहुत ज्ञानी हो।

एक पल तक तो राजा उसको एकटक देखते रहे और फिर बोले, ‘बताओ क्या चाहते हो?’ राजा की बात सुनते ही भिखारी जोर-जोर से हंसने लगा और बोला, ‘महाराज, अगर आपके क़िले के द्वार पर इस हाल में खड़े रहने के बाद भी आपको मेरी मांग का पता नहीं चल रहा है, तो आप मेरे कहने पर भी मेरी बात समझ नहीं पाएँगे। पूरे ध्यान से मुझे देख लेने भर से ही आपको मेरी प्रार्थना समझ आ जाएगी।’


भिखारी की बात सुनते ही राजा को तुरंत अपनी गलती का एहसास हो गया। वे सोचने लगे अगर मैं किसी को देख लेने, उसके मन के भाव को पढ़ लेने के बाद भी अगर उसकी स्थिति नहीं समझ पाऊँगा, तो शायद मैं उसके शब्दों का भी सही अर्थ कभी समझ नहीं पाऊँगा।’ यह विचार आते ही राजा ने तुरंत उस भिखारी की सहायता करी और उसकी सोच की गहराई की कद्र करते हुए उसे अपना सलाहकार नियुक्त कर लिया।


दोस्तों, कहानी ने हमें यह बात तो एकदम सटीक समझाई है कि, ‘अगर आप किसी की स्थिति नहीं समझ पा रहे हैं, तो आप उसके शब्दों को भी समझ नहीं पाएँगे। इसीलिए तो साथियों मेरे गुरु ने बहुत ही कम शब्दों में समझा दिया था कि सफल होना है तो सोचना, सुनना और बोलना सीखें।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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