Jan 28, 2023
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
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दोस्तों, अगर आपको लगता है कि आप का जन्म सफल होने, कुछ बड़ा कर इतिहास बनाने के लिए हुआ है तो आप एकदम सही हैं और अगर आपको ज़िंदगी एक बोझ के समान उबाऊ और परेशानी भरी लगती है, तब भी आप सौ प्रतिशत सही हैं। यक़ीन मानिएगा यह ज़िंदगी ठीक वैसी ही है जैसा आप इसके बारे में सोचते हैं। इसलिए साथियों कभी भी खुद को हतोत्साहित न होने दें। हर काली रात के बाद उजली सुबह आती है और ऐसा ही हमारा जीवन चक्र भी है। हो सकता है, आज आप चुनौतियों भरे दौर से गुजर रहे हों लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि पूरा जीवन चुनौतियों भरा ही रहेगा। अगर आप धैर्य और शांति के साथ थोड़ा सा इंतज़ार करते हुए सही दिशा में प्रयास करेंगे, तो जल्द ही आप को ईश्वर का कुछ ऐसा साथ मिलेगा कि आप खुद को नई ऊँचाइयों पर पाएँगे। दोस्तों, हमारे इतिहास में एक नहीं, हज़ारों ऐसे उदाहरण हैं। लेकिन मैं आज आपको उत्तर प्रदेश के कानपुर ज़िले के शिवराजपुर ब्लॉक के एक छोटे से गांव पाठकपुर में रहने वाली कंचन की कहानी से अपनी बात समझाने का प्रयास करता हूँ।
कंचन का जन्म एक बेहद ही गरीब परिवार में हुआ था। उनका परिवार गाँव के ही एक कच्चे मकान में किराए से रहता था जिसमें बरसात का पानी छप्पर ख़राब होने की वजह से घर के अंदर आ ज़ाया करता था। तमाम तकलीफ़ों और चुनौतियों के बाद भी कंचन का सपना बचपन से ही पढ़-लिख कर कम्प्यूटर इंजीनियर बनना था। इसी वजह से कंचन ने सरकारी स्कूल में पढ़ते हुए कक्षा दसवीं 80 प्रतिशत अंकों से एवं कक्षा बारहवीं 72 प्रतिशत अंकों के साथ उत्तीर्ण करी।
बारहवीं उत्तीर्ण करने के बाद उनके समक्ष मुख्य चुनौती थी मनचाहे इंजीनियरिंग कॉलेज में दाख़िला लेना। कंचन ने कॉलेज जाकर कई बार गुज़ारिश करी, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। कंचन के पास सिर्फ़ संसाधन कम थे, हिम्मत नहीं। उसने हार मानने के स्थान पर प्रयास करना जारी रखा, इसी का नतीजा हुआ कि कंचन को किसी ने अमित सर से मिलने के लिए कहा। उसके बाद अमित सर ने उसकी मुलाक़ात विजय कुमार सर से करवाई। कंचन की मार्कशीट और उसकी आँखों में सपने और आंसू एक साथ देख विजय सर ने उसका दाख़िला उसी कॉलेज की कंप्यूटर साइंस ब्रांच में करवा दिया। इसके बाद एक पिता के समान विजय सर ने कंचन की पढ़ाई की ज़िम्मेदारी उठाई। इतना ही नहीं विजय सर ने पढ़ाई के अंतिम वर्ष में कंचन को पेड इंटर्नशिप के लिए हैदराबाद भेजा। डिग्री के पश्चात, सॉफ्टवेयर इंजीनियर के रूप में नौकरी जॉइन करते तक कंचन का सारा खर्च अमित सर उठाते रहे। कंचन के मुताबिक़ कॉलेज की पढ़ाई से नौकरी तक अमित सर ने उसका एक भी पैसा खर्च नहीं होने दिया। इस दौरान कंचन की माँ श्रीमती नीलम दीक्षित एवं पिता श्री संजय कुमार दीक्षित ने कंचन को मनोबल बनाए रखने में पूरा साथ दिया।
नौकरी लगने के बाद कंचन ने अपनी पहली सैलरी से एक गीता ख़रीदी और बची हुई सैलरी व गीता अपने पिता समान शिक्षक विजय कुमार सर को भेजी। लेकिन विजय सर ने पैसे अपने आशीर्वाद सहित कंचन को वापस लौटा दिए। अब कंचन का पहला लक्ष्य अपने किराए के मकान का छप्पर ठीक करवाना है एवं उसके बाद वे अपने जैसे गरीब बच्चों की पढ़ने में हर संभव मदद करना चाहती हैं जिससे उनका भविष्य भी उज्ज्वल हो सके।
इसीलिए तो कहा गया है दोस्तों, ‘मंजिल उन्हीं को मिलती है, जिनके सपनों में जान होती है और पंखों से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है।’ जी हाँ साथियों हार ना मानना और सही दृष्टिकोण के साथ लक्ष्य की दिशा में ज्ञान बढ़ाते हुए एक-एक कदम आगे बढ़ना आपको सफल बना ही देता है।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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